Book Title: Gurutattva Siddhi
Author(s): Suvihit Purvacharya
Publisher: Satyavijay Smarak Jain Granthmala

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Page 8
________________ ( ३ ) तमांअनेक स्थळेविहार करताकरताश्री सत्य विजयपाटण आवीपहोंच्या. ५ स्वर्गवास क्रियानी उग्रताथी शरीर कृश थइ थइ गयुं हतुं, व्यासी वर्षनी उपर हती अने वृद्धावस्था पूरी आवी हती तेथी पोते पाटणज वधु बखत छेल्ला भागमां रह्या. अहीं राजनगरना शेठ सोमकरण शाह ना पुत्र सुरचंदशाह पंन्यासजीने खास वांदवा अर्थे आव्या हता. अने रुपैयादिक नाणावती तेमना अंग पूजता हता. कोइ श्रावको उपवासनां व्रत लेता हता, कोइ बीजां व्रतो स्वीकारता हता एम धर्मनो प्रभाव सारो देखानो हतो. अहीं संवत् ( १७५६ ना ) पोष सुद १२ शनिवारने सिद्धियोगे पंन्यासजी स्वर्गलोक सिधा व्या. आधी आखा नगरमा हाहाकार वर्ती रह्यो धर्मी श्रावको सुगुरुना स्वर्गमननिमित्ते उत्सवकरताहता अने सोनारुपाना फूलउछाळताहता आना स्मरणार्थे पाटणमां तेवखते स्थूभ स्थंभकर्यो हतो. अन्य विगतो (१) वनवास, श्री सत्यविजय महाराज संबंधी हकीकत रासमांथी उपर प्रमाणे नीकळे छे परंतु बीजां स्थळोएथी जे जे बिगतो प्राप्त थाय छे ते अहीं जणावीए छीए. श्री आत्मारामजीकृत जैनतस्यादर्शमां पृ. ६-८ मां नीचे प्रमाणे जणान्युं छे: - " श्री सत्यविजय गणीजी क्रिया उद्धार करी श्री आनंदघ नजी साथे बहु वर्ष सुधी वनवासमां रह्या; तथा महातपस्या यो - गाभ्यास प्रमुख कयुँ, ज्यारे बहुज वृड थइ गया. अने पगमां चालवानी शक्ति नरही त्या अणहिलपुर पाटणमां आवी रह्या. " आ वातने आ रासमांथी टेकोमळे छे. जुओ नीचे जणावेल छे के:धर्ममार्ग दीपाववा, पांगरीया हुनि एकाकी है: विचरे भारंडनी परे, शुद्ध संयमश्यं दिल छाकी रे. सहे परिषद आकरा, शोषे निज कोमल काया है; खमता समता आदरी, मेली सहु ममता माया रे,

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