Book Title: Gurutattva Siddhi
Author(s): Suvihit Purvacharya
Publisher: Satyavijay Smarak Jain Granthmala

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Page 26
________________ Wetetetetetetetetetetetetetetetetetetatatatatatatatatatatatatatatatatatatatatrictestetettebintatatatert Tato tre tatatatatatatatatatertretetrtetesteteetatestetestete tertreteretetetutoretratos तत्रैवअसुइ ठाणे पडिया चंपकमाला न कीरइ सीसे। पासत्थाइठाणेसु वट्टमाणा तह अपुजा ॥२॥ ____ अत्रोत्तरं-श्रीउपदेशमालायां । पासत्थोरसन्नरकुसील३नीअ४संसत्तजण५महाछंदं ६।। नाऊण तं सुविहिया सवपयत्तेण वज्जंति ॥१॥ ननु साम्प्रतीनाः साधवः किं भवता पावस्था उच्यन्ते, अवसन्ना वा किं वा कुशीलाः, उत संसक्ता यदा यथाच्छन्दाः, तत्र यदि पार्श्वस्थास्तदा सर्वतो देशतोवा, न तावत्सर्वतः तल्लक्षणं हि श्रीआवश्यके एवं“सो पासत्थो दुविहो सब्वे देसे अ होइ नायबो। सव्वंमि नाणदंसण-चरणाणं जो उ पासम्मि ॥१॥" वृद्धा अपि तल्लक्षणमेवमाहुःइच्छाछंदोति एगट्ठा ॥१। उरसत्तमणुवदिठं सच्छंदविग प्पियं अणणुवाइ । परतत्ति पतिति णेओ इणमो अहाछंदो: ३ ॥२॥ सच्छंदमइविगप्पिय किंची सुहसायविगइपडिबद्धो । * तिहिगारवेहिं मज्जइ तं जाणाही अहाछंदं ॥३॥" एते। पार्श्वस्थादयोऽवन्दनीयाः, क्व ?-जिनमते, न तु लोक * इति गाथार्थः ॥ प्रज्ञापयन् । एष तु यथाच्छन्द इच्छाछन्द इति एकार्थों ॥ १ ॥ उत्सूत्रमनुपदिष्टं स्वच्छन्दविकल्पितमननुपाति । परततिं प्रवर्तयति शेयोऽयं यथाच्छन्दः ॥२॥ स्वच्छन्दमतिविकल्पितं किञ्चित्सुखसातविकृतिप्रतिबद्धः । त्रिभिर्गौरवैर्माद्यति तं जानीहि यथाछन्दम् ॥ ३ ॥ मला etatatatatatatatatatatatatatatatatetet etetetetrtetatatatatatatatatatatatatatatatatatatatatatatatatatatatt

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