Book Title: Gurutattva Siddhi
Author(s): Suvihit Purvacharya
Publisher: Satyavijay Smarak Jain Granthmala

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Page 71
________________ tattet tatti tituttott.ttttttttttttttttttttttttatuternatitutttitutte tattottarttituttitutetitutterstutetstatutatutottatutetstate आमे घडे निहित्तं जहा जलं तं घडं विणासेइ। इय सिद्धंतरहस्सं अप्पहारं विणासेइ ॥ २३ ॥ जोग्गाजोग्गमबुज्झिय धम्मरहस्सं कहेइ जो मूढो। संघस्स य पवयणस्स य धम्मस्सय पचणी यो सो॥२४ न पमाणजुत्तमुवहिं धरति एमैं पि तुच्छमाभाइ । असढोवदंसिअत्तेण तविहस्सुवहिनिवहस्स ॥२५॥ इहरा बाहुठिअं पत्तं एमं तु पडलयच्छन्नं । पत्ता बंधकयं पुण बीअं मत्तं अगोबर उ ॥२६॥ एगमि अ रयहरणं भवे न इण्हिं विसिट्ठमुणिणो वि। तो एत्थपयत्थम्मि य पुब्वमुणिणो च्चिअ पमाणं॥२७॥ सेवंति य अववायं दूसणमेअंपि घडइ नो सम्म। तविहसंघयणाई विरहा सुत्तुत्ति उ तह य ॥ २८ ॥ सवत्थ संजमं संजमाओ अप्पाणमेव रक्खिजा। मुच्चइ अइवायाओ पुणो विसोही नयाविरई ॥२९॥ किञ्च-काहं अच्छित्तं अदुवाअहीयं तवोवहाणंमि अउज्जमिस्सं गणव नीईइव सारइस्सं, सालंबसेवी समुवेइ मोक्ख३० सीलंगाण विभावो नाउं सबन्नुवयणओ चेव। कह भणिथमन्नहेमं बकुसकुसीलेहिं जा तित्थं ॥३१॥ कालानुसारिकिरियारयत्ति चारित्तिणो पवुच्चंति । ************************************** *

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