Book Title: Gurutattva Siddhi
Author(s): Suvihit Purvacharya
Publisher: Satyavijay Smarak Jain Granthmala
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सामस्थकालदोसा सक्कंपि कयाइ जायइ असक्कं । आयव्ययतुलणाए तदकरणे वि हु न तो दोसो॥१३॥ पासत्थाईसंगो नमणं च न संगयति जं वयसि । तं पिहु मिच्छासिद्धंत-वयणओ तप्पवित्तीए ॥१४॥ नणु सिद्धंतनिसिद्धं बालवणाई वि किं पुणो नमण।। ओसन्नो पासत्थो इच्चाई भूरि भणणाओ ॥१५॥ सव्वमिमं ता सुत्ते वायनमोक्कारमाइ किं वुत्तं । परियायपरिसपुरिसा द[दे]विक्खओ अ हतयं मूढा॥१६॥
जइ ते फुडं अजोगा ता--तन्नमणाइकीसाणुनायं । * कारणमवि हु इहरा पासंडीणं पि तं होउ ॥१७॥
यह ते नो जिणलिंगे का तदविक्खा हु भावसारत्ते । * अणुअत्तणा य भणिआ तेसिं पि हु जेण वुत्तमिम॥१८॥
अग्गीयादाइन्ने खिते अन्नत्थ ठिइअभावम्मि। भावाणुवघायणुवत्त-णाए तेसिं तु वसिअव्वं ॥ १९ ॥ इहरा सपरुवघायो उच्छोभाईहिं अत्तणो लहुआ। तेसिं च कम्मबंधो दुगंपि एवं अणिट्ठफलं ॥ २० ॥ ता दवओ उ तेसिं अरत्तदुहेण कन्जमासज। अणुवत्तणस्थमेसिं कायव्वं किंपि उण भावाओ॥२१॥ न परुवंति य सुद्धं एअंपिय दूसणं जहाजोगं ।। पन्नवणं चिअ वुत्तं इहरा दोसो तिज भणियं ॥ २२ ॥
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