Book Title: Gurutattva Siddhi
Author(s): Suvihit Purvacharya
Publisher: Satyavijay Smarak Jain Granthmala
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(४८) st.tattatutet.tutetitutitut.twt.tatutorst.tattatituti tattvate न परूवंति य सुद्धं ४ न धरंति पमाणजुत्तमुवगरणं५ ।। थेवेसु वि रोगेसु जह तह सेवंति अववायं ६ । ॥३॥ इथ अट्ठारससोलंग-सहस्सधरणं विणा कहं समणा । हुंति गुरू तदभावे कह वा ते दणिज्जा य ॥४॥ । भणिशं गुरुणा भदय ! मा साहणं अभावमुल्लवसु ।
तदभावे धम्मस्सवि नूणमभावो तए इट्ठो ? ॥५|| मिच्छत्तपउरयाए न नजईदाणिं देवनामंपि। किं पुण कालोचित्र सुमुणिविरहओ मग्गविन्नाणं ६॥ पिंडविसुद्धिं न कुणंति जं च वुत्तं तयपि हु न जुत्तं ।। निवसत्तिकालक्खित्ताणुसारयो तप्पवित्तीए ॥७॥ गिद्धिसढभावविरहा सुद्धी तदभावो विजं भणिय।। सुद्धं गवेसमाणो बाहाकम्मे वि सो सुद्धो ॥८॥ कह नज्जइ अग्गिद्धी घरधणसयणाई सबचागाओ। तं जेसि नासिपुटिव ते कह नणु इत्थ चागीयो॥९॥ सुकरो इच्छाचागो अभावओ वि अ तुम न किं कुणसि दीणुद्धरणाइ खमा तुज्झ विनोदी सएलच्छी ॥१०॥ नेवायरंति सक्कंपि जं च भणिअं तयपि निस्सारं ।।
आवस्सयाइं किं ते न कुणंति जमेवमुल्लवसि ॥११॥ ३ अहविगइचागमणु--खणमुस्सग्गं कप्पविहरणाई।
सक्कंपि नायरंती कह नजइ सक्रमेयमहो ॥१२॥
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