Book Title: Gurutattva Siddhi
Author(s): Suvihit Purvacharya
Publisher: Satyavijay Smarak Jain Granthmala

View full book text
Previous | Next

Page 74
________________ Kere ( ५३ ) ता भयवं ! साहह को पुए एस पुव्वे भवम्मि तोत्ति । मुणित्रइणा जंपिक मेगमणसा भो ! निसामेह ॥ ५२ ॥ एसो सावत्थीए नयरीए गिहीवइस्स बंभस्त । पुत्त नाम कुबेरोति आसि पिउणो य सो दोसो ॥ ५३ ॥ संभूयगणिसमीवे पव्वइओ किञ्चिराणि वि दिणाणि । वियनएहिं वडिअ पच्छापरिवडि उच्छाहो ॥ ५४ ॥ आवस्सयाइएसुं लस्सं पइदिणंपि कुणमाणो । गुरुणा सासिज्जतो साहूहियको मुहइ ॥ ५५ ॥ एसिंपि साहुखलियां पिक्खित्ता भण्णइ निययदुच्चरित्रां रक्खति न थेवपि हु परस्स पुण दिति उवएसं ॥५६॥ बालगिलाणाईणं वेावच्च सया वि किञ्चति । गुरुणो वि परेसिंपन्नवंति न सयं पुण करंति ॥५७॥ एमाइ दूसणाई वागरमाणो किलिट्टमणत्रयणो । मरिउं सुरनिकाए किब्बिसिश्रासुं सुरिं पत्तो ॥ ५८ ॥ तत्तो चविऊं इहि सावयभावं गा वि एस इहं । पुव्वाणुवेह उच्चि पहुच्च मुणिणो इअ भणेइ ॥ ५९ ॥ इति । यदुक्तं कल्पभाष्ये उस्सुतभासगा जे ते दुक्करकारगावि सच्छंदा | ताणं न दंसणं पि हु कप्पइ कप्पे जओ भणिअं ॥१॥

Loading...

Page Navigation
1 ... 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82