Book Title: Gurutattva Siddhi
Author(s): Suvihit Purvacharya
Publisher: Satyavijay Smarak Jain Granthmala
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shetat tetntattattattoto.tattattatutotketstakntatrkattrinky जह कप्परुक्खविरहे रुक्खा भन्नंति निंबा वि ॥३२॥ अह सम्ममा मुणियंमि मुणिम्मि नमणाइ कीरइ कहं ति: वभिचार दसणाश्रो एअंपि न सुंदरं जम्हा ॥३३॥ छउमत्थसमयवजा ववहारनयाणुसारिणी सवा।। तं ववहारं कुव्वं सुज्झइ सव्वो वि समईए ॥३४॥ जइ जिणमयं पवजह ता मा ववहार निच्छए मुअह ववहारनउच्नेए तित्थुच्छेओ हवइ जम्हा ॥३५||तथा--: धम्मज्जियं च ववहारं बुद्धेहायरियं सया। तमायरंतो ववहारं गरिहं नाभिगच्छइ ।। ३६ ॥ ता दूसमाए दोसं-विउं जत्थ जं पलोएज्जा । नाणे व दंसणे वा चरणे वा तमुववूहेज्जा ॥ ३७ ॥ किश्चन विणा तित्थं निअंढेहिं नातित्था य नियंठिआ। छक्कायसंजमो जाव ताव अणुसजणा दुहं ॥३॥ तहा-जा संजमया जीवेसु ताव मूला य उत्तरगुणा य इत्तरिअश्वसंजम-निग्गंथबउसा य पडिसेवी ॥३९॥ वीरपुरिसपरिहाणिं नाऊणं मंदधम्मिा केइ । संविग्गजणं हीलंति ताण पयडा इमे दोसा ॥४०॥ संतगुणछायणा खस्नु परपरिवायो अ होइ अलिथं च धम्मे य अबहुमाणो साहुपउसे य संसारो ॥४१॥
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