Book Title: Gurutattva Siddhi
Author(s): Suvihit Purvacharya
Publisher: Satyavijay Smarak Jain Granthmala

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Page 61
________________ (४०) settt.tattatutet tototetot.tottottotter..................Lt.totakom.inturiomarathi । संसिज्जइ निअकिरिआ दूसिज्जइ सयलसंघववहारो कत्तो इत्तो वि परावि माणणा हंदि संघस्स ॥१॥ उप्पन्नसंसया जे सम्म पुछंति नेव गीअत्थे । चुक्कंति सुद्धमग्गा ते पल्लवगाहि पंडिच्चा ॥२॥ जो मोहकबुसिअ-मणो, कुणइ अदोसे वि दोससंकप्पं । सो अप्पाणं वंचइ पेवावमगोवणिसुउव्व ॥ ३॥ अवसउणकप्पणाए सुंदरसउणो (वि) असुंदरं फलइ । इअ सुंदरावि किरिया असुहफला मलिणहिअयस्स ॥ इति । न च शासने केषांचिद्दोषान् दृष्ट्वा सर्वेषां सदोषत्वमारोपयितुं युक्तं, यतो वृहद्भाष्येजो जिणसंघ हीलइ संघावइवस्स दुकयं दटुं। सव्वजणहीलणिजो भवे भवे होइ सो जोवो ॥१॥ जइ कम्मवसा केई असुहं सेवंति किमिह संघस्स ।। विद्यालिजइ गंगा कयाइ किं कागसबरेहिं ॥२॥ जो पुण संताऽसंते दोसे गोवेइ समणसंघस्स । विमलजस कित्तिकलिओ सो पावइ निव्वुइं तुरिअं॥३॥ जह कणरक्खणहेउं रखिज्जइ जत्तयो पलालंपि। सासणमालिन्नभया । तहा कुसीलंपि गोविज्जा॥ 1 इति । तथा-ननु पावस्थादीनां बंद्यत्वे, कथं पास त्थो ओसन्नो इत्यादिवाक्यैः सह न विरोधः, उच्यते Setetetetetztetetrtetetztetetetetztetetetet tet tetetetztetetztetetet etetetstatatatatatatatatatatatata FTTTTTTTTTTTTTTTTTTTTTTTTTTTr

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