Book Title: Gurutattva Siddhi
Author(s): Suvihit Purvacharya
Publisher: Satyavijay Smarak Jain Granthmala
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Hetere teretetetrtetateetet istatatertretetietetretetretetretetet Wetortzete tetestetik १ क्वचिच्चावश्यकजोतकल्पादौ कारणे साधून श्रादांचा श्रित्य वंद्यत्वम् । जीवानुशासन ग्रन्थादौ तु-- किं च जइसावयाणं नमण नो सम्मयं भवे एवं।
आणं ता कह उवएसमालाए ॥ १॥ सिरिधम्मदासगणिणा न वारिश्र वारियं च अन्नेसि ।।
परतित्थियाणपणमणइच्चाईवयणओ पयडं ॥२॥ 1 संघेण पुणो बाहिं जो विहिओ हुज सो उ नो वंदे। पासत्थाई सडाण सव्वहा एस परमत्थो ॥ ३ ॥
इत्यादि युक्त्या श्राद्धानाश्रित्य निष्कारणेऽपि वन्यत्वम् । क्वचिच्चासंयतत्वं क्वचिच चारित्रित्वं प्रतिपाद्यते, तदेषां सर्वेषां वाक्यानामयं भावो बहुश्रुतैरभिधीयते।। सर्वपार्थस्थसर्वावसन्नयथाच्छन्दा बहुदोषत्वेनावन्द्या भ. वन्तु । देशपावस्थादयस्तु तादृगपरशुद्धचारित्र्यभावे प्रा. गुक्तयुक्तिभिश्चारित्रसत्तायाः प्रतिपादितत्वेन बकुशकुशीलादिलक्षणान्तःपातित्वेन च प्रागुक्तज्ञानग्रहणादिकारणैश्च वन्द्या एव । उक्तमपि
पलए महागुणाणं हवंति सेवारिहा लहु गुणा वि। . * अथमिए दिणनाहे अहिलसइ जणो पईवंपि ॥१॥
गुणगणरहिओ अगुरू दट्टयो मूलगुणविउत्तो जो। नयगुणमित्तविहीणित्थं चंडरुद्दो उदाहरणं ॥२॥
तथा ३५५ गाथामाने श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्रभाष्येऽ.. प्युक्तं -किश्च..
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