Book Title: Gurutattva Siddhi
Author(s): Suvihit Purvacharya
Publisher: Satyavijay Smarak Jain Granthmala
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.ketstatute t.ttetstatutatute that.ttttt.twitt.tttttt.ttoty. “संनिहिमाहाकम्मं जलफलकुसुमाइं सबसञ्चित्तं । निच्चदुत्तिवार भोअण-विगइलवंगाइ तंबोलं ॥१॥ वत्थं दुप्पडिलेहिय-मपमाणसकन्नियं दुकूलाइं। सिजोवाणहवाहण--आऊहतंबाइपत्ताई ॥२॥ सिरतुंडं खुरमुंडं रयहरमुहपत्तिधारणं कज्जे । एगागित्तभमणं सच्छंदं चिट्ठिअं गीयं ॥३॥ चेइयमठाइवासं पूआरंभाइ निच्चवासत्तं । देवाइ दवभोगं जिणहरसालाइकारवणं ॥४॥ न्हाणुवट्टणभूसं ववहारं गंथसंगहं कीलं । गामकुलाइममत्तं थीनटें थीपसंगं च ॥
___थीपरिग्गहो वावि" इति पाठः ॥५॥ निरयगइहेउजोइ-सनिमित्त तेगिच्छमंतजोगाइ । मिच्छाइरायसेवं नीयाणवि पावसाहिज्जं ॥६॥ सुविहियसाहुपउसं तप्पासे धम्मकम्मपडिसेहं । सासणपभावणाए मच्छरलउडाइकलिकरणं ॥७॥ सीसोदराइकोडण-भट्टित्तं लोहहेउ गिहिथुणणं । जिणपडिमाकयविक्रय-उच्चाडणखुद्दकरणाई ॥८॥ थीकरफासं बंभे संदेहकलंतरेण धणदाणं । वडयसीसगहणं नीयकुलस्सावि दवेणं ॥९॥ सबावज्जपवत्तण-मुहुत्तदाणाइ सबलोआणं ।
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