Book Title: Gurutattva Siddhi
Author(s): Suvihit Purvacharya
Publisher: Satyavijay Smarak Jain Granthmala

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Page 38
________________ Efetatatatatatetztetetetztetetztetetretetetatatatatatatatatatatatatatateretetetattetetztetettettetett Wetetatatatatatataterteretetrteterator tetrtetatoritatatatatatateste testata terteraturen इत्यादिजीतकल्पवचनप्रामाण्यात् । तदानीं प्रतिदिनविधेयाऽऽवश्यकविधिशिक्षणादि तत्पार्वे सुतरां कार्य, शुद्धचारित्र्यभावे। . नन्वेवं पश्चात्कृतादीनामपि वन्द्यत्वं स्यात्तेषामपि आलोचनाधिकारेऽधिकृतत्वात्, नैवं, तेषां साधुवेषाभावात्। साधुवेषाभावे हि प्रत्येकबुद्धादिरपि न वन्यः स्याकि पुनरितरः। - यदुक्तं श्रीपञ्चकल्पे एवं तु दवलिंगं भावे समणत्तणं तु णायवं । को उ गुणो दवलिंगे भण्णति इणमो सुणसु वोच्छं।। सक्कारवंदणनमंसणा य पूआ य लिंग कप्पम्मि। । पत्तेयबुद्धमादी लिंगे छउमत्थतो गहणं ॥२॥ वत्थासणसक्कारो वंदण अब्भुट्ठाणं तु णायव्वं । पणिवाओ उ णमंसण-संतगुणकित्तणा पूआ ॥३॥ ठूण दवलिंग कुव्वते ताणि इंदमाइवि । लिंगम्मि अविज्जते न नजती एस विरओत्ति ॥४॥ पत्तेयबुद्धो जाव उ गिहिलिंगी अहव अन्नलिंगी उ।। देवावि ताण पूयंति मा पुज्ज होहिति कुलिंगं ॥५॥ ननु महानिशीथेजीवे सम्मग्गमोइन्ने घोरवीरतवं चरे। . अचयंतो इमे पंच सव्वं कुजा निरत्थयं ॥१॥ Retetetztetetetutetetetetutetetetetatatatatatatatatatatatatetrtetetztetet tetetztetetattetettetett,

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