Book Title: Gurutattva Siddhi
Author(s): Suvihit Purvacharya
Publisher: Satyavijay Smarak Jain Granthmala

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Page 29
________________ Wetetetatatatatatatetetetut tetetztetati * Arteteretetortrete tretztetet e tretetetste tretetet tetoritetetztetet terete tratatatatatatatatateretetetztetetteteateretetren (८) petertretetetutetetectetetettet atatetieteetate testeretetet e treteteatretateetatening * 'थूलभदसामी तत्थेव गणिआघरे भिक्खं गेहइ' इति अथ समुदितमिति पक्षः, तहिं साम्प्रतिकसाधुष्वपि । 2 केषुचिच्छय्यातराभ्याहृतराजपिण्डग्रहणादिरूपसमुदित तल्लक्षणस्याभावात् कथं देशपाश्वस्थत्वम् ?, अनया दि. शा अवसन्नादित्वमपि निषेध्यम्, किश्च-सौम्य! किमेवं मुधा सम्यसिद्धान्तानभिज्ञोऽपि पावस्थत्वादिदोषारो पेण साम्प्रतिकसाधून दूषयसि ? । यतः श्रीनिशीथेसंतगुणछायणा खलु परपरिवायो अ होइ अलियं च। धम्मे अ अरज्जमाणो साहुपउसे य संसारो ॥१॥ ततः शृणु सम्यक् तत्त्वं, मात्सर्यमपहाय, यदि मोक्षायसि । शास्त्र पुलाकादयः पश्च निग्रन्थाउक्तास्तत्र बकुश कुशीलौ सर्वतीर्थकराणां तीर्थ यावत् प्रवर्तते । तल्लक्षणं चेदम्-श्रीभगवती २५ शतकषष्ठोद्देशकीर्थसंग्रहिण्याम् ।। श्री अभवदेवसूरिकृतपश्वनिर्ग्रन्थसंग्रहिण्यां, तथाहि-- बउसं सबलं कब्बुर--मेगटुं तमिह जस्स चारित्तं ।। अइयारपंकभावा सो बउसो होइ निग्गंथो ॥१॥ उवगरणसरीरेसुं सदुहा दुविहो होइ पंचविहो । आभोग अणाभोगे अस्संवुडसंवुडे सुहुमे ॥२॥ १ बकुशं शबलं कर्बुरमिति 'एकार्थ' एकाभिधेयं तदिति तादृशं - यस्य चारित्रमतिचारपङ्कसद्भावात् । स बकुशो भवति निर्ग्रन्थः ॥ १॥ २ स धकुश उपकरण-शरीरभेदादद्वेधा । तत्र वस्त्रपापाद्यपकर णविभूषानुवर्तनशील: उपकरणबकुशः । करचरणनखमुखा दिदेहावयवविभूषानुवर्तनशीलः शरीरबकुशः । सद्विविधो* लाला betetztettetrtrtrtrtettetrtetetztetetet tetetatatatatatat

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