Book Title: Gurutattva Siddhi
Author(s): Suvihit Purvacharya
Publisher: Satyavijay Smarak Jain Granthmala

View full book text
Previous | Next

Page 31
________________ yetst.titutet totatutet.totatsetst.t.tot.tutet.t.t.t.tet.tt.tet.... परिवारो य असंजम अविवित्तो होइ किंचि एयस्स। घंसिअपायो तिल्लाइ मसिणियो कत्तरि य केसो ॥७॥ तह देससव्वछेआ-रिएहिं सबलेहिं संजुओ बउसो।। मोहक्खयट्ठमभुट्ठियो अ सुतमि भणियं च ॥ उवगरणदेहचुक्खा रिद्धी जसगारवासिआ निन्छ । बहुसबलछेअजुत्ता निग्गंथा बाउसा भणिया ॥९॥ ऑभोगे जाणतो करेइ दोसं अजाणमणभोगे। 1 मूलुत्तरेहिं संवुड-विवरीय असंवुडो होइ ॥१०॥ अच्छि मुहमज्जमाणो होइ अहासुहमओ तहा बउसो सीलं चरणं तं जस्स कुच्छियं सो इह कुसीलो ॥११॥ Catatatatatatatatatatatatatatatatatatatatatatatatetetatatatatatatatatatatatatatate retete teretetetretetetet e tretetetetsteatrettertatatatertretetetetrete treteteatreteretetrteetateretetetretetetxtetet १ पतस्य परिवारः 'असंयमः असंयमधान. 'अविविक्तः' वस्त्र पात्रादिस्नेहाद पृग्भूतः, 'घंसिअपाओ' इति घर्षितपादः तै लादिमा मसृणितः कतितकेशः ॥ ७ ॥ २ तथा देशच्छेदसर्पच्छेदाः शवलचारित्रैः संयुतो वकुशो मोहक्षयार्थमभ्युस्थितः सूत्रे भणितं च ॥ ८ ॥ ३ उपकरणदेहशुद्धा ऋद्धि यशः सातागारवाश्रिता अविविक्तप. रिवाराश्छदयोग्यशबलचारित्रयुक्ता निर्ग्रन्था बकुशा भा णिताः ॥ ९॥ ४ साधूनामकृत्यमेतदिति जानन कुर्वन्नाभोगवकुशः १ । अजा नन् कुर्वन्ननाभोगबकुशः २। मूलोत्तरगुणैर्युक्ता लोकेऽधिज्ञातदोषः संवृतबकुशः ३ । विपरीतो लोके प्रकटदोषोऽसं. वृतबकुशः ४ ॥ १० ॥ ५ 'भक्षिमुखादिमार्जयन्' नेत्रमलाद्यपनयन यथासूक्ष्मबकुशः ५। शीलं चरणं तद्यस्य कुत्सितं स इह कुशील: ॥ ११ ॥

Loading...

Page Navigation
1 ... 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82