Book Title: Gurutattva Siddhi
Author(s): Suvihit Purvacharya
Publisher: Satyavijay Smarak Jain Granthmala

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Page 6
________________ tetetatetrt statetat tetrtetettetet ettetrtetatt tetstatatatatatatat retstatatatatatatatata teretetetetztetetrtetateetatatatatatatatataterte toetretetestatatatataterte श्रीमत्पंन्याससत्यविजयजीगणीनुं जीवन चरित्र ॥ १ जन्म, साधु उपदेश. हालमां माळवा देशथी ओळखता सपादलक्ष देशमा लाडलं नामनुं गाम हतुं. अहीं वेपार सारो चालतो हतो. दूगड गोत्रना वीरचंद नामे शेठ वसता हता, अने तेनी भार्यानुं नाम वीरमदे हतुं बने धर्मिष्ठ हता, अने तेमने शिवराज नामनो पुत्र थयो. बालपणामां तेने धर्म प्रत्ये सारी भावना हती. एक दिवस त्यां ए. क मुनिराज पधार्या. तेना दर्शनथी पोताने उंडी छाप पडी, अने उपदेशथी प्रतिबोध पाम्यो. मा अने बापने दीक्षा माटे रजा आ*पा बहु प्रार्थना करी, आखरे शिवराज एकनो बे थयो नहि * अने तेणे मावापने समजावी रजा लीधी, पछी मावापे कडु के 'तुं * लुकामां ( हालना स्थानकवासी) दीक्षा ले तो ते पंथना आचायेने तेडावी सारो दीक्षा समारंभ करावं ' त्यारे शिवराजे कयु के जे गच्छ मुविहित- सारी विधि पाळनार छे अने जेमां शुद्ध सा. माचारी-क्रिया छे अने जेमां जिनराजनी पूजा करी शकाय छे ते गच्छमां हुं संयम लेवानो छु. आथी मावापे तपागच्छमां पुत्र मन स्थिर जोइ श्रीविजयसिंहमूरिने तेडाव्या:पुत्र तेमनी पासेउत्सवपूर्वकदीक्षा१४वरसनीउमरेलीधी,नामसत्यविजयआपवामा आव्यु. २ अभ्यास, क्रियोद्धार. आ पछी शास्त्र सिद्धांतनो अभ्यास गीतार्थमुनि पासेथी करया लाग्या, भने उत्कृष्ट क्रिया पाळवा लाग्या. आमनी क्रिया बहु विख्याती पामी अने उत्तम वैरागी पुरूष ओळखाया. पछी तेमने गच्छनी परिस्थिति जोतां जणायु के क्रियामां शिथिलता बहु के * तो तेनो उद्धार करवानी जरूर छे, तेथी गुरु आचार्य श्री विज* यसिंहमूरिनीरजालइतेनाप्रयाणअर्थेविहारकों. रास'मां लखेछेके: श्री आचारज पूछीने, करूं क्रिया उद्धार; निज आतम साधन करूं बहुने करूं उपगार. FिTTTTTTTTTTPw statutetet.titutet.titutet.tt.t.totatuterot.t.titutitatitutetatutot.titutattatutetatutekitatatak tetstat trtetrtet sextetat

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