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सूरि न होवा छतां ते उग्रक्रियाधारी होवाथी तेने वंदना करता हना, अने तेवो क्रम चे त्रण पाट मुधी रह्यो पण पछी न रह्यो कारण के कलियुगनी विशेषना छे, आ माटे दृष्टांत आपे छे. जेम आ
खु नगर घेला बनावना जल पीवाथी गांडु थइ गयु अने राजा * अने प्रधान के जेओ ते जल पीधु न होवाथी डाटा रह्या हता ते * ओने पण ते गांडाओमां भळवू पडयु ( कारण तेम न करे तो १ गांडा तेओने त्रास आप्या वगर न रहे.) तेम कलियुग आवतो ग। यो तेम क्रिया ओछी थी गइ, अने क्रिया प्रत्ये जोइए तेवुमान पणनग्युं,तेथीक्रियापरायणनेक्रियानकरनारासाथेचलावीलेवूपड्यु (४) क्रियाउद्धारमा श्री यशोविजयजीनी सहाय.
मूळ श्री जिनहर्षरचित श्री सत्यविजयजीना रासमां क्रि* योद्धार करवामां कोइपण सहायकर्ता हतुं एम दर्शावेल नथी, पर
तु उपर जणावेल श्री वीरविजयजी पंडिते आपेली प्रशस्तिमा ' वाचक जश तस पक्षीजी ' एम चोख्खु लखेल छे. आ संबंधमां वीरविजयजी १९ मा सैकार्मा थइ गया तेना पहेलानो समय जोइए तो विशेष समर्थन मळेछे,केश्रीयशोविजयजीए सहाय आपी छे.. श्री यशोविजयजी पोते ३५० गाथाना स्तवनने अंते लखे छे के:तास पाटे विजयदेवसूरीसरू, पाट तस गुरु विजयसिंह धोरी' .. जास हित शीखथी मार्ग ए अनुसयों,जेहथी सवीटली कुमति चोरों ३ आनापर सं.१८३०मांटबोकरनारश्रीपद्मविजयजीअर्थ पूरे छ के
"वळी तेने पाटे श्री विजयदेवसस्थिया, तथा तेमना पाटे श्री विजयसिंहपूरि ते गच्छनो भार बहेनाने वृषम समान धोरी ॐथया जेमनी हिनशीख-आज्ञा पामीने में ए संवेगमार्ग आदेयों, ए
टले ए भावने श्री जशोविजयजी उपाध्याये पण एओनी आज्ञा पामीने क्रियाउद्धार कयों, तथा श्री विजयसिंहरिना शिष्य अनेक हना तेमां सत्तर शिष्य सरस्वती बिरुदधारी हता ते सर्व मां * महोटा शिष्य पंडित श्री सत्यविजयजी गणी ईता. तेमणे(विजयसिं
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