Book Title: Gurutattva Siddhi
Author(s): Suvihit Purvacharya
Publisher: Satyavijay Smarak Jain Granthmala

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Page 20
________________ tetetetrtrtetatatatatatatatatatatatatatatrtrtetet tetett iftatututet ३ बउसेणं पुच्छा ? गोयमा ? पडिसेवए होज्जा, अप्प. डिसेव ए होज्जा ! जदि पडिसेवए होज्जा, कि मूलगुणपडिसेवए होज्जा, उत्तरगुणपडिसेवए होज्जा ? गोय. मा नो मुलगुणपडिसेवए होज्जा, उत्तरगुणपडिसेवए होज्जा, तथा पडिसेवणाकुसीले जहा पुलाए, मूलगुणपडिसेवए होज्जा उत्तरगुणपडिसेवए होज्जा ॥ भगवतीसूत्रशतक, २५ उद्देशो ६ भावार्थ:- बकुशनो प्रश्न- हे गौतम ! बकुश विराधक पण - होय अने अविराधक पण होय, जो विराधक होय तो मूलगुण विराधक होय के उत्तरगुण विराधक ? हे गौतम ! मूल गुणविराधक न होय, पण उत्तर गुण विराधक होय, तथा प्रतिसेवना कुशील तो पुलाकनी माफक मूल गुणविराधक अने उत्तर गुणविराध क होय छे, अहिया मूल गुण अने उत्तर गुणना विराधकपणाने विषे पण पुलाकादि मुनिओनु जे निर्ग्रन्थपणु का के, ते जवन्य जघन्यतर अने उत्कृष्ट उत्कृष्टतरभेद वाला संयमस्थानोनी * अपेक्षाए जाणवू माटे पासत्था आदिना लक्षणो तपासवाना * क्लेशे करीने सयु ! श्री जिनवल्लभसूरि पण द्वादशकुलकप्रक रणमा लखे छ के- कदाचित् कालादिकना दोपथी सेवा गुणसंपन्न साधुओ न देखाता होय तेथी सर्वत्र तेवा साधुओनो अभा व छै एवो अविश्वास तो नज राखवो, केमके जे साधुओ कदाग्रह 1 रूप कलंकयी रहीत होय अने सर्वशक्तिए करी आगमने अनु सारे चारित्रने विषे उद्यमवंत होय तेवा साधुओने विशुद्ध चारित्र tetetatatatatatatatatatatatatatatatatatatatatatatatatatates tatatatatet retrtetetattete tetatatatatatatat

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