Book Title: Gurutattva Siddhi
Author(s): Suvihit Purvacharya
Publisher: Satyavijay Smarak Jain Granthmala

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Page 21
________________ (८) वान् जाणबा ए प्रमाणे अरिहंतना सिद्धान्तनेविषे कछु छे. वली व्यवहारसूत्र ना पहेला उद्देशानां पण कह्यु छे के चक्कायाणं तु संजमे जोऽणु घावए ताय जाब) मूलगुणउत्तरगुणो दोण्णि वि अणुधावए ताय ॥ १ ॥ भावार्थ:- हे परक ? ज्यां सुधी पृथ्वी अप् तेन वायु वनस्पति अने त्रस ए छक्काय जीवो ने विषे सैंयमना प्रबन्धे करीने बर्ते के पटले छक्काय जीवोनी रक्षाकरे छे त्यां सुधी चारित्रना मूल अने उत्तरगुणो होय के माटे देशकालने अनुसरीने चारित्रने विषे उद्यमवंत साधुओ बकुश अने कुशीलपणाथी भिन्न नथी माटे शास्त्रानुसार वंदनीकज के एम सूचववानो आ ग्रन्थनो मुख्य उददेश छे. इत्यलं विस्तरेण ॥ अमदाबाद. सं० १९८४ फाल्गुन शुक्ल पञ्चमी, *45* लेखक: मुनि श्री मानविजय.

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