Book Title: Gurutattva Siddhi
Author(s): Suvihit Purvacharya
Publisher: Satyavijay Smarak Jain Granthmala

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Page 15
________________ ( २ ) · जेम अपवित्र स्थानमां पडेली सुगंधमय चंपकपुष्पनी माला मस्तकपर धारण करावी नथी, तेम पासत्था आदिक स्थानमां वर्तता मुनिपण अजनिक छे, ए प्रमाणे आवश्यक नियुक्तिनेा पाठ आपीने वंदननो निषेध करे छे. तेमने ग्रन्थकार पुछेछे के वर्तमान काळना साधुओने शुं तमे पासत्था अवसन्ना कुशील संसक्त के यथाच्छन्द मानो छो ? सर्वथी तो पासस्था कही शकाशे नहि, केमके सर्वथी पासत्थानुं लक्षण आवश्यक निर्युक्तिमा आ प्रमाणे क छे. W 66 सो पासो दुविहो सव्वे देसे य होइ नायव्वो । सयंमि नाणदंसणचरणाणं जो उपासंमि ॥ १ ॥ भावार्थ:- ते पात्याना वे भेद छे, सर्वथी अने देशथी, जे ज्ञान दर्शन अने चारित्रनी पासे रहे पण तेओना आचारनुं बीलकुल पालन करे नहि ते सर्वथा पासत्थो जाणवो, वृद्धपुरूषो पण पासत्याना लक्षणो आ प्रमाणे बतावे छे - रात्रीए राखेली वस्तु खाय, निर्वाह थइ जतो होय छतां पोताने माटे करेली वस्तु ग्रहण करे, जळ फळ फूल आदि सर्व सचित्त वस्तुओ वापरे, हम्मेशां बे ऋण वार भोजन करे, विग लवंग एळची पान सोपारी विगेरे बापरे, शय्या जोडा घोडागाडी तांबाना पात्रो वापरे, जरूर पडे त्यारे रजोहरण मुखवस्त्रिका देखावमाटे धारण करे, एकला फरे, स्वच्छन्द पणे ज्यां त्यां उभा रहे, देरासर तथा मठादिमां रहे, पूजानो आरंभ करे, हमेशां एकस्थाने रहे, देवद्रव्यनो उपभोग करे, जिनालय पौषधशाला विगेरे करावे, स्नान उद्वर्तन विलेपन आदि शरीरनी शोभा करे, द्रव्यसंग्रह करे, ग्राम कुलादिपत्ये ममत्वभाव राखे, स्त्रीओनो परिचय करे, नरकगतिना कारणरूप ज्योतिष-नि

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