Book Title: Gurutattva Siddhi
Author(s): Suvihit Purvacharya
Publisher: Satyavijay Smarak Jain Granthmala

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Page 13
________________ (८) tott.t.tt.ttttttttt.ttttt.tttt.titutet.tot.tut. हरिनी) आज्ञा पामी क्रियाउद्धार कीघो ते माटे एम बयु जे मार्ग ॐ ए अनुसर्यो-ए संवेग मार्गआदर्यो, जे आदरवाथकी तीर्थंकर अदत्त - गुरु अदत्त, इत्यादि कुमति कदायहरूप चोरी टली गइ." (५) समकालीन विद्वानो. श्री सत्यविजयजी पंन्यासनो समय बहु झळहळतो छ अने ते समयमा जे जे पारमार्थिक प्रतिभाशाली एरुषो थया छे तेथो जै ३ नसमाजने अद्भून धर्मलाभ मळयो छे. आ वखते विद्वानोनो स. हे मूह जैनोमा हतो, जेमांना केटलाफ नामो आपीए छीए. श्री वा, चकवर उपाध्यायश्री यशोविजय, विनयविजय उपाध्याय (के. जेनु चरित्र 'नयकर्णिका'मा जुओ), अध्यात्मरसिक वनवासी१ श्री आनंदघनजी, उपाध्याय श्री मानविजयगणि ( 'धर्मसंग्रह ना रचनार ), श्री ज्ञानविमलसरि ( के जेनो "विमल'पक्ष हजु सु. धी विद्यमान छे. ), धर्ममदिरगणि, रामविजयजी, लावण्यसुंदरआदि आ वधाए धर्मसाहित्य गुजराती भाषामा मूकी साहित्यधारा घणा वेग पूर्वक टकावी राखी है. प्रख्यात दिगंबर कवि बनारसीदास ( ममयसारना रचनार ) पण आ सपये विद्यमान हता. तेमज अन्य दर्शनोमां रामदास, तुकारामादि हता के जेमणे भक्ति प्राधान्य अपूर्व संगीत गाइ समाज सुधारणा अने गष्टमुस्थिति माटे प्रबळ प्रयत्न कर्यों छे, अने गुजरातमां कवि प्रेमानंद, शामल अने अखाए पोतानी काव्यगिराथी गुजरातने गजाची छे. रासकार श्री जिनहर्ष. आ रास तेमणे सं. १७५६ ना महा सुद १० मी रचेल छे. ३ पोते खरतरगच्छना हतां छतां तपगच्छना पंन्यास प्रखर श्री स. त्यविजयजीनो रास पोतेरच्यो छे, ए परथी गच्छभेदनी टुंकी दृष्टि ते वखते नहोती एमजणायछे. ते भोनी वंशपरंपरा नीचे प्रमाणे इती. xजिनचंद्रसूरि ( खरतर गच्छ ६५ मी पाटे.) | शांतिहर्षगणि ( वाचक) | जिनहर्ष tatatatatatatatatatatatatatat et etatatatatatatatatatatatatat catatatatetelarveveterinariantatatatatat SaraKeTeXXXXnixtitutitutetitutetitutitutitutituteketstatutetatutatutekat.katrint.xxx.katrkatrintainty.

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