Book Title: Gurutattva Siddhi
Author(s): Suvihit Purvacharya
Publisher: Satyavijay Smarak Jain Granthmala

View full book text
Previous | Next

Page 4
________________ ( ३ ) माने feasts दानादिक धर्मो गुरु महाराजना उपदेशथी क री शकाय के माटे हे मूढ ! परीक्षा कर्या विना तेज गुरुनो आश्रकरतो निरर्थक दानादिक धर्मना प्रयासो करे छे, आ उपरथी गुरुतश्वनी शुद्धिनी घणी आवश्यकता छे, परंतु अवसर्पिणी कालना दोषथी जेम पृथ्वी आदि पदार्थोंमां रूप रसादिनी हाणी देखायछे, तेम वर्तमान कालना साधुओ पण तथाप्रकारना संघयण तथा शारीरिक बळना अभावे कदाचिद अपवाद रूपे अतिचारनु सेवन करता हशे तेथी केटलाक मंदबुद्धि जीवो सिद्धान्तनी गाथा बतावीने साधुओने अवंदनिक कहे छे परंतु अपवादपदे अतिचारना सेवन करवा माथी कांइ सर्वथा चारित्रनो अभाव यतो नथी, भगवती सूत्रां पांचा प्रकारना निर्ग्रन्थो कथा छे, तेमां बकुशनेउत्तर गुणना विराधक अने कुशीलने तो मूल गुण अने उत्तर गु बन्नेना विराधक कहेल के ए बन्ने निर्ग्रन्थो सर्व तीर्थंकरोना तीर्थपर्यंत अवस्थित होय छे तेथी देशकालने अनुसरीने सर्व शrिe करीने चारित्रनु पालन करनारा साधुओ पण बकुश अने कुशील पणाथी भिन्न नयी माटे वंदनिकज छे, ए बावनी ग्रंथकारे सिद्धान्तनी साक्षीयो आपीने युक्तिपूर्वक सारीरीने सिद्धि करी हे तेथी ए ग्रन्थनुं नाम योजके गुरुतध्वसिद्धि राखेल छे. आ पु. स्तनो लगभग चउदआनी भाग सिद्धान्तना पाठोथी भरपूर छे फक्त वे आनी भाग जेट लखाण कर्त्तानु देखाय छे, पुस्तकनी aani ग्रन्थकारे पोतान' नाम आप्यु नथी, तेथी अमे सुविहितपूचार्यप्रणीता एटलुंज नाम राख्यु छे, आ ग्रन्थनी वे तो अपने "डोलाना उपाधयना भंडारमाथी मली छे, तेमां एक प्रत सात पानानी अने बीजी अगीयार पाना

Loading...

Page Navigation
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 ... 82