Book Title: Gurutattva Siddhi Author(s): Suvihit Purvacharya Publisher: Satyavijay Smarak Jain Granthmala View full book textPage 5
________________ retrtrtrtatatatatatatatatatatatatatatatatatatatatatatatatetrtrtetetatatatatatatatatatatatatat, tetate stotstot.tutatutstotstatuttitutituttituttt.tattatstitutttity नी अने प्रायः शृद्ध हती ए बन्ने पुस्तकोने आधारे संशोधन करीने आ ग्रन्थ छगन्यो छे,वाचकनी सरलताने माटे केटलेक स्थले टीप्प णीयो पण मुकी छे अने गुजराती वांचनारा पण एनो लाभ लेड शके ते माटे आदिमां ग्रन्थपरिचय आप्यो छे, ग्रन्थनी अंतमां प्रतिमागुणदोषविचार नामनु लघु पुस्तक दाखल कर्यु छे, जे वर्तमानकालमां घणु उपयोगी छे ए पुस्तकनी एकज प्रत अमने डहेलाना भंडारमाथी मली छे, तेमां वे प्रकरणी छे, एक बिंबपरीक्षाकरण अने बीजु विवपूजास्वरूप ए पुस्तक बहुन अशुह हो. वाथी अने बीजी आदर्श प्रत मली शकी नहि तेथो आ पुस्तक बनती रीो सुधारीने छपाव्यु छे ए बन्ने पुस्तकोनी शुद्धि तरफ पुरतुं लक्ष्य आप्यु छे, छतां क्यांइ दृष्टिदोषथी अथवा प्रेसना दोषथी भूलो रही गएली जणाय तो विद्वानोए क्षमा करवी अने सुधारीने वांचवं अगर ए भूलो सुधारोने कोइ महाशय अमने लखी मोकलेशे तो बोजी आवृत्तिमा सुधारो करीशुं इति शम् ॥ Setetetetetetetetztetetztetetztetetztetetetetatatatatatatatatatatatatatatatatatatatatatatatatatatatatate अमदावाद. सं० १९८४ फाल्गुन शुक्ल पञ्चमी. लेखक:मुनि श्री मानविजय. ललललललललPage Navigation
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