Book Title: Gommatasara Karma kanad Part 1
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith
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कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका मरुळमाडुगुमंते मद्यसुं निजस्वभावमं पत्तुविडिसि सोक्किसुगुमप्पुरिदं । आयुष्यकमक्क चतुम्विपाहारं नोकर्म द्रव्यकर्ममक्कुमा चतुविधाहारक्के आयुष्यकर्मवंत आयुःकर्मधृतशरीरक्क बलाधानकारणत्वविदं शरीरस्थितिहेतुत्वमुंटप्पुरदं। नामकर्मक्के औदारिकादिदेहं नोकर्म व्यकर्ममक्कुमा देहक्केयुं नामकर्मदंते औदारिकादिदेहनिवर्तकत्वमुंटदेते दोडे औदारिकादिदेहवर्गणेगळ्गे योगोत्पादकत्वमुंटप्पुरदं तन्निमित्तकमप्पौदारिकादिदेहनिर्वर्तकत्वं सिद्ध- ५ मप्पुरिदं ॥ __गोत्रकम्मक्के युच्चनीचांगं नोकर्मद्रव्यकर्ममक्कुमदक्के गोत्रकर्मदंत उच्चनीचकुलाविर्भावकत्वमुंटप्पुरिदं । अन्तरायकर्मक्क भाण्डागारिकं नोकर्म द्रव्यकर्ममक्कुमवंगमंतरायकर्मवंत भोगोपभोगादिवस्तुगळ्गमन्तरायकरणत्वमुंटप्पुरदं । तु मते ॥ अनंतरमुत्तरप्रकृतिगळ्गे नोकर्मद्रव्यकर्ममं पेदपरु :
पडविसयपहुँडिदव्वं मदिसुदवाघादकरणसंजुत्तं ।
मदिसुदबोहाणं पुण णोकम्म दवियकम्मं तु ॥७०॥ पटविषयप्रभूति द्रव्यं मतिश्रुतव्याघातकरणसंयुक्तं । मतिश्रुतबोधयोः पुनर्नोकर्म द्रव्यकर्म तु॥
पटप्रभृतिद्रव्यं विषयप्रभूतिद्रव्यमुं क्रमदिदं मतिज्ञानव्याघातकरणसंयुक्तमु श्रुतज्ञानव्याघात- १५ करणसंयुक्तमप्पुन कारणमागि मतिज्ञानावरणक्के पटप्रभृतिद्रव्यं नोकर्मद्रव्यकर्ममक्कुं। श्रुतज्ञानावरणक्के विषयप्रभूतिद्रव्यं नोकम्मंद्रव्यकर्ममक्कुं। तु इति ॥ नीयस्य मद्यं सम्यग्दर्शनादिजीवगुणघातकत्वात् । आयुषः चतुर्विधाहारः धृतशरीरस्य बलाधानकारणत्वेन स्थितिहेतुत्वात् । नामकर्मण औदारिकादिदेहः योग्योत्पादकत्वेन औदारिकादिदेहनिवर्तकत्वात् । गोत्रस्य उच्चनीचाङ्गं उच्चनीचकुलाविर्भावकत्वात् । अन्तरायस्य भाण्डागारिकः भोगोपभोगादिवस्तूनामन्तराय- २० करणात् ॥६९॥ तु-पुनः अनन्तरमुत्तरप्रकृतीनामाह
पटप्रभृतिद्रव्यं मतिज्ञानस्य विषयप्रभृतिद्रव्यं श्रुतज्ञानस्य च व्याघातकरणसंयुक्तं तत्तदावरणयो।कर्मद्रव्यकर्म भवति तु-पुनः इति ॥७॥ नोकर्म मद्य है क्योंकि वह जीवके सम्यग्दर्शन आदि गुणोंका घातक है। आयुका नोकर्म चार प्रकारका आहार है क्योंकि वह धारण किये शरीर के बलाधानमें कारण होनेसे उसकी २५ स्थिति में निमित्त होता है । नामकर्मका नोकर्म औदारिक आदि शरीर है क्योंकि वह योगका । उत्पादक होनेसे औदारिक आदि शरीरको उत्पन्न करता है। गोत्रकर्मका नोकर्म उच्च-नोच शरीर है क्योंकि वह उच्च और नीच कुलको प्रकट करता है। अन्तरायका नोकर्म भण्डारी है क्योंकि वह भोग-उपभोग आदिकी वस्तुओंमें विघ्न डालता है ॥६९॥
आगे उत्तर प्रकृतियोंमें नोकर्म कहते हैं
मतिज्ञानमें बाधा डालनेवाले वस्त्र आदि द्रव्य मतिज्ञानावरणके नोकर्म द्रव्यकर्म हैं। और श्रुतज्ञानमें बाधा डालनेवाले इन्द्रियोंके विषय आदि श्रुतज्ञानावरणके नोकर्म हैं ।।७०॥
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