Book Title: Gommatasara Karma kanad Part 1
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

View full book text
Previous | Next

Page 683
________________ कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका ६३३ पंच स्थानंगळोळु भुज्यनामनुष्यने बोडोद भंगंगळप्पुवु । मतं देशसंयत गुणस्थानदो तीत्यरहितंगप्प द्वितीपंक्ति शस्थानंगको चर्यपंक्तिद्वयदशस्थानंगळोठमवर प्रथम द्वितीयस्थानद्वयंगळोळु शुजालान मनुष्यं बबुदेवायुष्यनु भुज्यमानतिय्यंचं बद्धदेवायुष्यने बेरडेरडं भंगंगळं भुज्यमानमनुष्यं भुज्यनातिपंचगुजियरडेरई भंगलप्पु । यितागुतं विरलु देशसंयतन नाल्वतं स्थानंगळगे नास्वागतु : जालसंयतंगं नाल्वत्तं स्थानंगळगे नाल्वत्ते भंगंग- ५ ळप्पुवु । अप्रपतसंपतंगे नाल्यानुं स्थानंगळो नाल्यते भंगंगळप्पुवु । संदृष्टि :देशयतंगे प्रयतसंयतंग सतीर्य |ब १५६ १४२ १४ अ १४५ अतीर्थ १४५ सतीर्थ ब१४२ १३८ १३७ अतीर्य |ब १४१ १३७ १३६ १४१ चतुर्थपंक्तिद्वयदशस्थानेषु च प्रथमद्वितीयस्थानयोर्भुज्यमानमनुष्यबद्धदेवायुष्कभुज्यमानतिर्यग्बद्धदेवायुको भुज्यमानमनुष्यभुज्यमानतिर्यचौ च भवतः । एवं सत देशसंयस्य चत्वारिंशस्थानानामष्टचत्वारिंशद्धंगा भवंति । तथा प्रमत्ताप्रमत्तयोस्तु चत्वारिंशत्म्पानानां चत्वारिंशदेव भवंतीति ज्ञातव्यं ॥३८२॥ १० देशसंयतमें तीर्थंकर रहित दूसरी पंक्तिके दस स्थानों में-से और चौथी पंक्तिके दस स्थानों में. से पहले और दूसरे दो स्थानों में दो-दो अंग होते हैं। सो बद्धायुकी दूसरी और चौथी पंक्तिके पहले और दूसरे स्थानमें भुज्यमान मनुष्यायु बध्यमान देवायु, भुज्यमान तिथंचायु बध्यमान देवायु ये दो-दो भंग होते हैं। तथा अबद्धायुकी दूसरी और चौथी पंक्तिके पहले और दूसरे स्थानमें भुज्यमान मनुष्यायु और भुज्यमान तियंचायु ये दो-दो भंग होते हैं। इस १५ प्रकार देशसंयतमें चालीस स्थानों के अड़तालीस भंग होते हैं। किन्तु प्रमत्त और अप्रमत्तमें चालीस-चालीस स्थानोंके चालीस-चालीस भंग हैं ॥३८२॥ क-८० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org |

Loading...

Page Navigation
1 ... 681 682 683 684 685 686 687 688 689 690 691 692 693 694 695 696 697 698