Book Title: Gommatasara Karma kanad Part 1
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

View full book text
Previous | Next

Page 688
________________ ६३८ गो० कर्मकाण्डे नूरपदिनाकुनूरपदिमूरु नूरपन्नेरडं नूरारुं नूरदुनूरनाल्कुं नूरमूर प्रकृतिसत्वस्थानंगळप्पुववं प्रत्येकं चतुःप्रतिक माडि णभमेक्कं चारि पण परिहीणमेंदु स्थापिसुतं विरल संवृष्टिरचन यितिवर्क स १३८ १२२ ११४ ११३ ११२ १०६ १०५ १०४ १०३ अ१ १२१ ११३ १३२ १११ १०५ १०४ १०३ १०२ स १३४ ११८ ११० १०९ १०८ १०२ १०१ १०० / ९९ अ १३३ ११७ १०९ ११० १०७ १०१ १०० / ९९ / ९८ अनंतरं अनिवृत्तिकरणन मूवत्तारु प्रकृतिसत्वस्थानंगळोळ, भंगंगळ गाथाद्वदिवं पेळ्दपरु: भंगा एक्केक्का पुण णउस्सयक्खविदचउसु ठाणेसु । बिदियतुरियेसु दोदो भंगा तित्थयरहीणेसु ॥३८७॥ भंगा एकैके पुनर्नपुंसकक्षपित चतुर्दा स्थानेषु । द्वितीयतुय॑यो छौ द्वौ भंगो तोचकर होनयोः॥ ई क्षपकानिवृत्तिकरणसत्वस्थानंगळु मूवत्ताररोलं भंगंगळु प्रत्येकमो दो अयप्पुल्लि १० नपुंसकवेदमं क्षपिसिदे नाल्कुं सत्वस्थानंगळोळ तीर्थकरसत्वरहिंगळप्प द्वितीयचतुत्यस्थानवोळेर डेरडु भंगेंगळप्पुव ते दोर्ड पेवपर:रुत्तरशतकव्युत्तरशतकान्यपि भवति । तानि सर्वाणि चतुःप्रतिकानि कृत्वा णभमेक्कचारिपणहीणमिति स्थाप्यानि ॥३८६॥ अमीष षटत्रिंशत्सत्त्वस्थानेष भंगान गाथाद्वयेनाह एतेषु क्षपकानिवृत्तिकरणस्य षट्त्रिंशत्सत्त्वस्थानेषु भंगः एकैकः तत्र क्षपितनपुंसकवेदचःस्थानेषु १५ तीर्थकरत्वोनद्वितीयचतुर्थयोद्वौं द्वौ ॥३८७।। तद्यथा-. सौ तीन रूप आठ स्थान होते हैं। इनकी चार पंक्ति करके प्रथम पंक्तिमें शून्य, दूसरीमें तीर्थकर, तीसरीमें आहारक चतुष्क, चौथीमें तीर्थंकर आहारक चतुष्क घटाना। इस प्रकार चारों पंक्तियों के बत्तीस स्थान हए। चार अपूर्वकरणवाले स्थान मिलानेपर क्षपक अनिवृत्ति करणमें छत्तीस स्थान होते हैं ॥३८६।। क्षपक इन अनिवृत्तिकरणके छत्तीस स्थानोंमें दो गाथा द्वारा भंग कहते हैं क्षपक अनिवृत्तिकरणके छत्तीस स्थानों में एक-एक भंग होता है किन्तु इतना विशेष है कि जहाँ नपुंसक वेदका क्षय कहा है उन चार पंक्ति सम्बन्धी चार स्थानोंमें तीर्थंकर रहित दूसरी और चौथी पंक्ति सम्बन्धी दो स्थानोंमें दो-दो भंग होते हैं ॥३८७॥ उन्हें ही कहते हैं२५ १. स्त्रीवेदक्षपणायोग्यचतुथंस्थान । ऊर्ववागिर्द । wwwwwwwww Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 686 687 688 689 690 691 692 693 694 695 696 697 698