Book Title: Gommatasara Karma kanad Part 1
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 690
________________ ६४० गो० कर्मकाण्डे तान्ये कवि होनानि आ सूक्ष्मसांपरायन ज्वलनावारहितस्थानं नाकं संज्वलनलोभकषायम दरिदं होतंगळादुदादोडे क्षीणकषायंगे हिचरमसमयपर्यंत नाल्तु सत्वस्थानंगलधुवु । संदृष्टि : सू = १०२ १०१ ९८ ९ तानि १० द्वौ द्वौ भंगौ ॥ क्षीण क० द्विर० Jain Education International १०१ १०० ई नाकु स्थानंग प्रत्येकं निद्राप्रबलावरणद्वयरहितगळादोडे क्षीणकषायन चरमसमय५ सत्वस्थानंगळ नाटकप्पुवु । संदृष्टि ९७ ९६ अनंतर सयोगायोगिकेवलिगुणस्थानंगळोळु सत्वस्थानंगल पेदपर :ते चोपरिहीणा जोगिस्स अजोगिचरिमगो वि पुणो । बावत्तरिमडसट्ठि दुसु दुसु हीणेसु दुग दुगा भंगा ॥ ३९० ॥ चतुगपरिहीनानि योगिनोऽयोगिचरमेपि पुनद्वसप्ततिमष्टषष्टिं द्वयोर्द्वयो होंनेषु क्षी चरम १९९ ९८ ९५ ९४ भवंति । एतानि चत्वारि संज्वलनलोभहीनानि क्षीणकषायद्विवरमसमयपर्यंतं भवंति । एतानि पुनद्राप्रवलारहितानि चरमसमयस्य भवंति || ३८९ || अथ सयोगायोगयोराह - सौ एक, अठानवे और सत्तानवे प्रकृतिरूप हैं। इन चारों स्थानों में से संज्वलन लोभ घटानेपर एक सौ एक, एक सौ सत्तानवे, छियानबे प्रकृतिरूप क्षीणकपायके द्विचरम समय पर्यन्त चार स्थान होते हैं । इन चारों स्थानों में से निद्रा प्रचलाको घटानेपर निन्यानबे अठानबे, पंचानबे, चौरानबे प्रकृतिरूप क्षीणकषायके अन्तिम समय में चार स्थान होते हैं ।। ३८९ || १५ आगे सयोगी-अयोगी में कहते हैं For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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