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गो० कर्मकाण्डे
तान्ये कवि होनानि आ सूक्ष्मसांपरायन ज्वलनावारहितस्थानं नाकं संज्वलनलोभकषायम दरिदं होतंगळादुदादोडे क्षीणकषायंगे हिचरमसमयपर्यंत नाल्तु सत्वस्थानंगलधुवु । संदृष्टि :
सू =
१०२
१०१
९८
९
तानि १० द्वौ द्वौ भंगौ ॥
क्षीण क०
द्विर०
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१०१
१००
ई नाकु स्थानंग प्रत्येकं निद्राप्रबलावरणद्वयरहितगळादोडे क्षीणकषायन चरमसमय५ सत्वस्थानंगळ नाटकप्पुवु । संदृष्टि
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अनंतर सयोगायोगिकेवलिगुणस्थानंगळोळु सत्वस्थानंगल पेदपर :ते चोपरिहीणा जोगिस्स अजोगिचरिमगो वि पुणो । बावत्तरिमडसट्ठि दुसु दुसु हीणेसु दुग दुगा भंगा ॥ ३९० ॥ चतुगपरिहीनानि योगिनोऽयोगिचरमेपि पुनद्वसप्ततिमष्टषष्टिं द्वयोर्द्वयो होंनेषु
क्षी चरम
१९९
९८
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भवंति । एतानि चत्वारि संज्वलनलोभहीनानि क्षीणकषायद्विवरमसमयपर्यंतं भवंति । एतानि पुनद्राप्रवलारहितानि चरमसमयस्य भवंति || ३८९ || अथ सयोगायोगयोराह -
सौ एक, अठानवे और सत्तानवे प्रकृतिरूप हैं। इन चारों स्थानों में से संज्वलन लोभ घटानेपर एक सौ एक, एक सौ सत्तानवे, छियानबे प्रकृतिरूप क्षीणकपायके द्विचरम समय पर्यन्त चार स्थान होते हैं । इन चारों स्थानों में से निद्रा प्रचलाको घटानेपर निन्यानबे अठानबे, पंचानबे, चौरानबे प्रकृतिरूप क्षीणकषायके अन्तिम समय में चार स्थान होते हैं ।। ३८९ ||
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आगे सयोगी-अयोगी में कहते हैं
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