SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 689
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका थीपुरिसोदयचडिदे पुव्वं संदं खवेदि थी अत्थि। संढस्सुदये पुव्वं थोखविदं संढमस्थिति ॥३८८॥ स्त्रीपुरुषोदयचटिते पूर्व षंडं अपयति स्त्रीवेदोस्ति षंडस्योदये पूर्व स्त्रोक्षपितं पंडमस्तोति ॥ स्त्रीवेदोवयदिदमु पुरुषवेदोददिवमुं क्षपकधेणियनेरिदवर्गळ मुन्नं खंडवेवमं क्षपिसुवरु। ५ स्त्रीवेदं सत्वमुंदु । षंडवेदोदयदिदं क्षपकश्रेणियनेरिदोडे मुन्नं स्त्रीवेदं क्षपिसल्पटु षंडवेदं सत्वमुंटे वितरडेरडं भंगंगळप्पुवंतागुत्तं विरलनिवृत्तिकरणंगुभयश्रेणियोळं कूडि द्वाषष्टिभंगंगळप्पुषु । ई पक्षदोळु क्षपकानिवृत्तिकरणंगे मायासत्वरहितस्थानंगळु नाल्किल्ल। चदुसेक्कं बादरे येंदु पेळ्वाचार्यन पक्षदोळनिवृत्तिकरणंगे मायारहितचतुःस्थानंगळुमोळवु । अनंतरं क्षपकसूक्ष्मसांपरायंगं क्षीणकषायंगं सत्वस्थानंगळं पेळ्दपरु : अणियट्टिचरिमठाणा चत्तारिवि एक्कहीण सुहुमस्स । ते इगि दोण्णिविहीणं खीणस्सवि होति ठाणाणि ॥३८९॥ अनिवृत्तिचरमस्थानानि चत्वार्यप्येकहीनानि सूक्ष्मस्य। तान्येकद्विहीनानि क्षीणकषायस्यापि भवंति स्थानानि ॥ क्षपकानिवृत्तिकरणन संज्वलनमानरहितमप्प नाल्कु सत्वस्थानंगळोळ संज्वलनमाययों दु। १५ सत्वरहितंगळादुवादोड सूक्ष्मसांपरायंगे नाल्कुं सत्वस्थानंगळप्पुवु । संदृष्टि : स्त्रीवेदोदयेन वेदोदयेन वा क्षपकश्रेणिमारूढाः पूर्व षंढवेदं क्षपयंति स्त्रीवेदसत्त्वं स्यात् । षंढवेदोदयेनारूढाः पूर्व स्त्रीवेदं क्षपयंति षंढवेदसत्त्वं स्यात् । तेन द्वौ द्वौ भंगो भवतः। एवं सत्यनिवृत्तिकरणस्योभयश्रेण्योमिलित्वा द्वाषष्टिभंगा भवंति । अस्मिन्पक्षे क्षपकानिवृत्तिकरणस्य मायोनचत्वारि स्थानानि न संति चदुसेक्के वादरे इति पक्षे संति ॥३८८॥ अथ क्षपकसूक्ष्मसांपरायक्षोणकषाययोराह २० क्षपकानिवृत्तिकरणस्य संज्वलनमानरहितचत्वारि स्थानानि संज्वलनमायाहीनानि भूत्वा सूक्ष्मसांपरायस्य जो जीव स्त्रीवेद या पुरुषवेदके उदयसे आपकश्रेणि चढ़ते हैं वे पहले नपुंसक वेदका क्षपण करते हैं। उनके पूर्वोक्त दोनों स्थानोंमें स्त्रीवेदका सत्व रहता है। किन्तु जो नपुंसक वेदके उदय के साथ क्षपकश्रेणि चढ़ते हैं वे पहले स्त्रीवेदका क्षपण करते हैं उनके नपुंसकवेदका सत्त्व रहता है। इससे दो स्थानोंमें दो-दो भंग होते हैं। इस प्रकार क्षपकके छत्तीस स्थानोंके २५ अड़तीस भंग और उपशमकके चौबीस भंग मिलाकर अनिवृत्तिकरणमें बासठ भंग होते हैं। इस पक्षमें क्षपक अनिवृत्तिकरणमें माया रहित चार स्थान नहीं होते। किन्तु 'चदुसेक्के बादरे' इत्यादि गाथा आगे कहेंगे। उस पक्षकी अपेक्षा ये चार स्थान होते हैं। यह कथन आगे करेंगे ॥३८८॥ आगे क्षपक सूक्ष्म साम्पराय और क्षीणकषायमें कहते हैं भपक अनिवृत्तिकरणमें जो संज्वलन मानरहित चार स्थान कहे थे, उन चार स्थानोंमें-से संज्वलन मायाको घटानेपर सूक्ष्मसाम्परायके चार स्थान होते हैं। वे एक सौ दो, एक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001325
Book TitleGommatasara Karma kanad Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages698
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, Karma, P000, & P040
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy