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________________ कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका ६४१ आक्षीणकषायक्षपकन चरमसमयचतुःसत्वस्थानंगळोळ प्रत्येक पविनाल्कुं पविनाल्कुं प्रकृतिगळु क्षपिसल्पटु सत्वरहितंगळागि सयोगकेवलि भट्टारकंगयुमयोगिकेवलि भट्टारकद्विचरमसमयपयंतमुं नाल्कुं नाल्कुं सत्वस्थानंगळप्पु । संदृष्टिः | अयो० वि० ८५ ८५ ८४ ८१ अयोगिकेवलि चरमेपि पुनः अयोगिकेवलि भट्टारकन चरमसमयदोळु तन्न द्विचरमसमयचतुःसत्वस्थानंगळो प्रथमद्वितीयस्थानदोळप्पत्तरडुमनेप्पत्तेरडुमं तृतीयचतुत्यंस्थानद्वयदोळरु- ५ वत्तं टुमरुवत्तेटुं प्रकृतिगळं होनं माडुतिरलु शेषप्रकृतिसत्वस्थानंगळु अयोगिकेवलिचरमसमयदोळु पदिमूलं पन्नरडु पदिमूलं पन्नेरमितु नाल्कुं सत्वस्थानंगळप्पुवल्लि पुनरुक्तस्थानद्वयम बिट्टेरडमपुनरुक्त स्थानंगळप्पुवु चरम । अल्लि सातोदयमुळ्ळंगे असातं सत्वमिल्ल । असातोक्यमुळ्ळंगे सातं सत्वमिल्ले वितु द्वौ द्वौ भंगौ भवतः आ एरडेरड भंगंगळप्पुवु । यितु गुणस्थानवोळु प्रकृतिसत्वस्थानंगळु भंग- १० सहितमागि पेळल्पटुवु। तानि क्षोणकषायचरमसमयस्थानानि चतुर्दशप्रकृतिरहितानि सयोगायोगद्विचरमसमयपर्यंतं च भवति । पुनद्विचरमचतुःस्थानेषु प्रथम द्वितीययो सप्ततो तृतीयचतुर्थयोरष्टषष्टयां चापनीतायां चरमसमये द्वे त्रयोदशात्मके द्वादशात्मके तत्र पुनरुक्तद्वये त्यक्ते द्वे भवतः। तत्र सातोदययुतस्य नासातसत्त्वमसातोदययुतस्य न सातसत्त्वमिति दो द्वौ भंगो भवतः । एवं गुणस्थानेषु सत्वस्थानानि सभंगान्युक्तानि ॥३९०॥ क्षीणकषायके अन्त समय सम्बन्धी चार स्थानों में से ज्ञानावरण पाँच, दर्शनावरण चार और अन्तराय पाँच इन चौदह प्रकृतियोंको घटानेपर पिचासी, चौरासी, इक्यासी और अस्सी प्रकृतिरूप चार स्थान सयोगी तथा अयोगीके द्विचरम समय पर्यन्त होते हैं। पुनः अयोगीके द्विचरम समय सम्बन्धी चार स्थानोंमें-से प्रथम और द्वितीयमें बहत्तर तथा तीसरे और चतुर्थ में अड़सठ प्रकृति घटानेपर तेरह, बारह, तेरह, बारह ये चार स्थान अयोगीके २० अन्तिम समयमें होते हैं । इनमें से दो पुनरुक्त छोड़ देनेपर दो रहते हैं। यहाँ जिसके सातावेदनीयका उदय होता है उसके साताका ही सत्त्व होता है असाताका सत्त्व नहीं होता। और जिसके असाताका उदय होता है उसके असाताका ही सत्त्व होता है साताका नहीं। अतः इन दोनों स्थानों में साता-असाता प्रकृतिके बदलनेसे दो-दो भंग होते हैं। इस प्रकार गुणस्थानोंमें सस्वस्थान भंगसहित कहे ॥३९०॥ क-८१ २५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001325
Book TitleGommatasara Karma kanad Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages698
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, Karma, P000, & P040
File Size16 MB
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