Book Title: Gommatasara Karma kanad Part 1
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 682
________________ ६३२ गो० कर्मकाण्डे देशसंयतगुणस्थानदोळं प्रमत्तसंयतगुणस्थानदोळमप्रमत्तसंयतगुणस्थानदोळं प्रतिस्थानमेकैकभंगंगळप्पुवु । देशसंयतगुणस्थानदोळु मत्ते द्वितीयपंक्तिद्वयद चतुत्थंपंक्तिद्वयव बद्धाबद्धायुष्यरुगळ प्रथम द्वितीयस्थानंगळोळु एरडेरडु भंगंगळप्पुवु । अदेंतेंदोडे देशसंयतादिगुणस्थानत्रयवोळम. संघतगुणस्थानदो पेन्दंते दुग छक्क सत्त अट्ठ णव रहिय मेंदु तिर्म्यगायुष्यमुं नरकायुष्यममंतेरडु मा येरडुमनंतानुबंधिचतुष्टयमुमंतारुमा आरं मिथ्यात्वप्रकृतियुमंतेळुमा एलु मिश्रप्रकृतियुमंते टुमा एंटु सम्यक्वप्रकृतियुमंतों भत्तु प्रकृतिगल क्रमदिदं सत्वरहितंगळागि नूर नाल्वत्तार नूरनाल्वत्तेरडुं नूरनाल्वतोदु नूरनाल्वत्तु नूरमूवत्तो भत्तु प्रकृतिसत्वस्थानंगळक्कुमेके दोडे असंयतादि नाल्कुगुणस्थानत्तिगळु दर्शनमोहनीय क्षपणाप्रारंभकरप्पुरिदमा पंचसत्वस्थानंगळं तिर्यक्कागि केळगे केळगे चतुः प्रतियं माडि स्थापिसिदोडे बद्घायुष्यंगे सत्वस्थानंगळप्पुवल्लि १० मत्तो वो दायुष्यंगळं कुंदिसियवर केळगे कळगे स्थापिसिदोडबद्धायुज्यंगे स्थानंगळप्पुवल्लि प्रथमपंक्तिद्वय दशस्थानंगळोळु तीर्थमुमाहारकचतुष्टयमुं सत्वमुंटप्पुरिदं शून्यमं कळेदु द्वितीयपंक्तिद्वय दशस्थानंगळोळु प्रत्येकं तीर्थमो दं कळेदु तृतीयपंक्तिद्वयदशस्थानंगळोळ तीर्थमनिरिसियाहारचतुष्कर्म कळेदु चतुर्थपंक्तिद्वय दशस्थानंगळोळु तीर्थमुमाहारचतुष्कमुममंतु प्रकृतिपंच कम कळेदु स्थापिसिटुं पंक्तिगळ बद्धायुष्यरुगळ पंचपंच स्थानंगळोळु प्रत्येकं भुज्यमानमनुष्यं १५ बद्धदेवायुष्यने बोदो दे भंगंगळप्पुवे दोडे भुज्यमानमनुष्य देशसंयतादिगळगे देवायुष्यं बध्यमानमल्लदितरायुस्त्रितयं बध्यमानायुष्यमादोडे देशवतमुं महाव्रतमुमिल्लप्पुरिदं । अबद्धायुष्यरुगळ पंच तद्गुणस्थानत्रयेऽप्यसंयतवद् दुगछक्कसत्तभट्टनव प्रकृतयो हीना भूत्वा पंचस्थानानि तिर्यगधोधश्चतु:प्रतिकं कृत्वा स्थाप्यानि बद्धायुष्कस्य भवंति । तत्र पुनरेकैकायुरपनीय तेषामधःस्थापितेष्वबद्घायुष्कस्य भवति । ता प्रथमपंक्तिद्वयदशस्थानेषु तीर्थाहारा: संतीति शून्यमपनीय द्वितीयपंक्तिद्वयदशस्थानेषु तीर्थमनोय २० तृतीयपंक्तिद्वयदशस्थानेषु तन्निक्षिप्याहारकचतुष्कमपनीय चतुर्थपंक्तिद्वयदशस्थानेषूभयमपनीय स्थापिताष्टपंक्तीनां बद्धायुष्कपंचपंचस्थानेषु प्रत्येकं भुज्यमानमनुष्यबद्धदेवायुरित्येक एव, इतरायुस्त्रये बध्यमाने देशमहावताभावात् । अबद्धायुष्कपंचपंचस्थानेषु भुज्यमानमनुष्य इत्येक एव । पुनर्देशसंयते तीर्थरहित द्वितीयपंक्तिद्वयदशस्थानेषु बद्घायु और अबद्धायुकी दूसरी दो पंक्ति और चौथी दो पंक्तिके पहले और दूसरे स्थानमें दो-दो भंग होते हैं, जो इस प्रकार हैं२५ देशसंयत आदि तीन गुणस्थानों में असंयतकी तरह दो, छह, सात, आठ, नौ प्रकृति ' रहित पाँच स्थान बरोबर लिखकर उनके नीचे-नीचे चार पंक्ति बद्धायुकी करो। और उनके नीचे बध्यमान एक-एक आयु घटाकर चार पंक्ति अबद्धायुकी करो। उनमेंसे पहली पंक्ति तीर्थकर आहारक सहित है । दूसरी पंक्तिमें तीर्थंकर प्रकृति घटाना। तीसरी पंक्ति में तीथंकर मिलाकर आहारक चतुष्क घटाना । चौथी पंक्तिमें तीर्थकर और आहारक चतुष्क घटाना । इस प्रकार बद्धायु अबद्धायुकी आठ पंक्तियोंके चालीस स्थान हुए। उनमें से जो बद्धायुके बीस स्थान हैं उनमें भुज्यमान मनुष्यायु बध्यमान देवायु यह एक-एक ही भंग होता है। क्योंकि अन्य तीन आयुके बन्धमें देशव्रत और महाव्रत नहीं होते। तथा अबद्धायुके जो बीस स्थान हैं उनमें भुज्यमान मनुष्यायु यह एक-एक ही भंग होता है। किन्तु इतना विशेष है कि m Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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