Book Title: Gommatasara Karma kanad Part 1
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 685
________________ कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका ६३५ स्थापिसिदोडवि नाल्कु पंक्तिगळप्पुवंते टु पंक्तिगळ्गे प्रतिपंक्ति प्रकृतिसत्वस्थानंगळ मूरु मूरागुत्तं विरलिप्पत्तनाल्कु सत्वस्थानंगळप्पुवु ॥ अनंतरं सत्वरहितप्रकृतिगळुमं भंगंगळुमं पेळ्दपरु : णिरयतिरियाउ दोण्णिवि पढमकसायाणि दंसणतियाणि । हीणा एदे णेया भंगा एक्केकगा होंति ॥३८४॥ नरकतिर्यगायुद्धयमपि प्रथमकषाया दर्शनमोहनीयत्रयाणि हीनान्येतानि ज्ञेयानि भंगा ' एकैके भवंति ॥ नरकायुष्यमु तिर्यगायुष्यमुमे बरडुमा येरडं प्रथमकषायंगळु नाल्कुमंतार मा आरं प्रकृतिगळं दर्शनमोहनीयत्रयमुमंत्तों भत्तुं प्रकृतिगळु हीनमागि क्रमदिदं नूरनाल्वत्तारुं नूरनाल्वत्तेरडुं नूर मूवत्तो भत्तं प्रकृतिसत्वस्थानत्रितयमप्पुबै दरियल्पडुवुवु । बद्धायुः स्थानपंक्तिगळु नाल्करोळु १० भुज्यमानमनुष्यं बद्धदेवायुष्यने बोदो दे भंगंगलरियल्पडुवुवु । आ पंक्तिचतुष्टयद तंतम्म केळगण अबद्धायुःस्थानत्रितयचतुःपंक्तिगळोळु भुज्यमानमनुष्यने ये बो दोदे भंगमागुत्तिरलिप्पत्तनाल्कुं स्थानंगळिगप्पत्तनाल्के भंगंगळप्पुपृ॥ युष्काणां तच्चतुःपंक्तीनां स्वस्याधः एककस्मिन्नायुष्यपनीते चतुःपंक्तयो भवंति । एवमष्टपंक्तीनां प्रत्येक त्रीणि त्रीणि भूत्वा चतुर्विशतिस्थानानि भवंति ॥३८३॥ अथ ता हीनप्रकृती भंगांश्चाह नरकतिर्यगायुषी तच्च प्रथमकषायचतुष्कं च तानि च दर्शनमोहत्रयं च अमूनि क्रमेण षट्चत्वारिंशच्छतद्वाचत्वारिंशच्छतैकान्नचत्वारिंशच्छतसत्त्वस्थानेष्वपनेतव्यानि । बद्धायुःस्थानपंक्तिचतुष्के भुज्यमानमनुष्यबध्यमानदेवायुरित्येकैक एव भंगः । तत्पंक्तिचतुष्कस्याधः अबद्धायुःस्थानत्रयचतुःपंक्तिषु भुज्यमानमनुष्य इत्येकक एव भंगः । एवं सति स्थानानि भंगाश्च चतुर्विंशतिर्भवंति ॥३८४॥ तीर्थंकर प्रकृति घटाना। तीसरी पंक्ति में आहारक चतुष्क घटाना। चौथी पंक्तिमें तीर्थंकर २० र आहारक चतुष्क घटाना। इस तरह बद्धायके बारह स्थान हए। और अबद्धायकी चारों पंक्तियों में सब स्थानों में एक-एक बध्यमान आयु घटानेपर बारह स्थान होते हैं। इस प्रकार आठ पंक्तियोंके तीन-तीन स्थान होनेसे सब चौबीस स्थान होते हैं ॥३८३।। आगे उन घटायी गयी प्रकृतियोंके नाम और भंग कहते हैं नरकाय तिर्यंचाय घटानेपर एक सौ छियालीस प्रकृतिरूप प्रथम स्थान होता है। दो २५ ये आय और अनन्तानबन्धी चतष्क घटानेपर एक सौ बयालीस रूप दसरा स्थान होता है। ये छह और तीन दर्शनमोह इन नौ को घटानेपर एक सौ उनतालीस रूप तीसरा स्थान होता है। इन तीनों स्थानोंकी पूर्ववत् चार पंक्ति करो। तब बद्धायुके बारह स्थान हुए। इन सबमें एक-एक बध्यमान आयु घटानेपर अबद्धायुके बारह स्थान होते हैं। इन चौबीस स्थानोंमें भंग एक-एक ही है। बद्धायुके स्थानोंमें तो भुज्यमान मनुष्यायु बध्यमान देवायु यह एक भंग ३० है। अबद्धायु स्थानोंमें भुज्यमान मनुष्यायु यह एक ही भंग होता है। इस प्रकार उपशम अपूर्वकरणमें चौबीस स्थान चौबीस भंग होते हैं ॥३८४॥ इसी प्रकार उपशमक अपूर्वकरणकी तरह उपशम श्रेणिके अनिवृत्तिकरण, सूक्ष्म Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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