Book Title: Gommatasara Karma kanad Part 1
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 620
________________ गो० कर्मकाण्डे नियममुंटप्पुदरंदं । मनुष्य त्रयेष्वप्योघः मनुष्यगतियो सामान्य मनुष्यर्थ्यातक मनुष्य योनिमतिमनुष्य ब मूरुं तरद. मनुष्यरोछु, योनिमतिमनुष्यरो अपकर्गे विशेषमुपुर्दारमा जोगळं बिट्टु सामान्य मनुष्यरुगळगं पर्याप्तमनुष्यरुगळगं योग्य सत्व प्रकृतिगळ नूरनात्वते ट १४८ वल्लि मिथ्यादृष्टिसुणस्थानदोलु नानाजीवापेझेयिदं नूरनात्वतेंदु प्रकृतिसत्वमक्कु १४८ । सासादन ५ गुणस्थानदोळ तीर्थमुमाहारद्विकं पोरगागि नूरनात्वत्तदु प्रकृतिसत्वमक्कु १४५ ॥ मिश्रगुणस्थानदो तीत्थं पोरगागि तूर नावत्ते प्रकृतिसत्वमक्कु १४७ | असंयत गुणस्थानदो नू - नात्वत्ते टु प्रकृतिसत्वमक्कु १४८ । देशमंयतनो नरकायुष्यमुं तिर्घ्यगायुष्यमुं बद्धयमानमनुष्यायुष्यमुं पोरगागि नूर नाल्व तारु प्रकृतिसत्वमक्कु १४६ । प्रमत्तसंयतनोळमंते नूरनाल्त्तारं प्रकृतिसत्यमक्कुं १४६ । अप्रमत्तसंयतनोळमंते नूर नाल्वत्तारं प्रकृतिसत्वमक्कुं १४६ । क्षपक. १० श्रेण्यपूर्वकरणनो भुज्यमानमनुष्यायुष्यं पोरगागि शेषमूरायुष्यंगळं सप्तप्रकृतिगळं कडिपत्तुं प्रकृतिगळ्वज्जितमागि नूर मूवत्तेढुं प्रकृतिसत्वमत्रकुं - १३८ । मुपशमश्रेण्यपेक्षेयिदं नरकतियंगायुद्वयरहितं नूरनात्वत्तार्रु १४६ क्षायिक सम्यक्त्वमं कुरुत्तु नूर मूवर्त्तदुं प्रकृतिसत्यमक्कु १३८ । उपशमकश्रेणियो क्षपकश्रेणियोळं दर्शनमोहक्षपर्णयिल्लप्पुदरिदं । श्रेणियिदं केळगण अबद्धायुष्यरप्प मनुष्यासंयत देशसंयतप्रमताप्रमत्तरोळ नूर मूवर्तदुं प्रकृतिसत्वरोलरेक दोडा नाकु गुण१५ स्थानवोळेल्लियादोडं दर्शनमोहक्षपर्णयक्कुमप्यदरिदं । अपूर्वकरण गुणस्थानदिवं मेलण गुणस्थानवनयनिवृत्तिकरणनोळमंते क्षपक श्रेण्यपेक्षपल्लवुपशमश्रेण्यपेक्षयदं नूरनात्वत्तारु १४६ नूर नियमात् । मनुष्यगती सामान्यपर्याप्तकयोनिमत्त्रिविधमनुष्येष्वोघः किंतु योनिमत्क्षपकेष्वेव विशेषः, तेन शेषद्वये सत्वमष्टचत्वारिंशच्छतं । तत्र मिथ्यादृष्टौ नानाजीवापेक्षया सत्त्वं सर्वं । सासादने तीर्थाद्वारा नेति पंचचत्वारिशच्छतं । मिश्र तीर्थं नेति सप्तचत्वारिंशच्छतं । असंयते सर्वं । देशसंयते प्रमत्ताप्रमत्तयोश्च न नरकतिर्यगायुषी बध्यमानदेवायुर्भुज्यमानमनुष्यायुश्चेति षट्चत्वारिंशच्छतं । क्षपकापूर्वं करणे भुज्यमानमनुष्यायुरस्तीति शेषायुस्त्र यसप्तप्रकृत्यभावादष्टत्रिंशच्छतं । उपशमश्रेण्यपेक्षया नरकतिर्यगायुरभावात् षट्चत्वारिंशच्छतं । क्षायिकसम्यक्त्वं प्रत्यष्टत्रिंशच्छतं । अबद्धायुर्मनुष्यासंयतादिचतुर्ष्वपि तत्प्रत्यष्टत्रिंशच्छतं । अनिवृत्तिकरणे उपशमऔर देवा भी न होनेसे सत्व एक सौ पैंतालीस । और गुणस्थान मिध्यादृष्टि ही होता है, क्योंकि 'ण हि सासणो अपुण्णे' इस नियम के होनेसे उसमें सासादन गुणस्थान नहीं होता । मनुष्यगति में सामान्य मनुष्य, पर्याप्तक मनुष्य और योनिमत् मनुष्यों में गुणस्थानवत् जानना । किन्तु योनिमत् मनुष्योंमें क्षपक श्रेणीमें ही विशेष है । शेष दोनों में सत्त्र एक सौ अड़तालीस | उनमें मिथ्यादृष्टि में नाना जीवोंकी अपेक्षा सब प्रकृतियोंका सत्व है । सासादन में तीर्थंकर और आहारकद्विक न होनेसे सत्त्व एक सौ पैंतालीस । मिश्र में तीर्थंकर के न होनेसेस एक सौ सैंतालीस । असंयत में सबका सत्व है । देशसंयत और प्रमत्त अप्रमत्त गुणस्थानों में नरकायु तिर्यंचायुका सत्त्व न होनेसे सत्व एक सौ छियालीस । वहाँ ३० बध्यमान देवायु और भुज्यमान मनुष्यायुका ही सत्त्व होता है । २० २५ ५७० क्षपक अपूर्वकरण में केवल भुज्यमान मनुष्यायुका ही सत्त्व होनेसे शेष तीन आयु और क्षायिक सम्यक्त्व होनेसे मोहनीय की सात प्रकृतियों के न होनेसे सत्त्व एक सौ अड़तीस । उपशम श्रेणिकी अपेक्षा नरकायु तिर्यंचायुका असत्त्व होनेसे सत्त्व एक सौ छियालीस और Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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