Book Title: Gommatasara Karma kanad Part 1
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 675
________________ कर्णावृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका अनंतरं भंगंगळं गाथात्रयदिदं पेदपरु : आदिमपंचट्ठाणे दुगदुगभंगा हवंति बद्धस्स । इयरसविणादव्वा तिगतिग इगि तिणि तिण्णेव ॥ ३७९ || आदिमपंचस्थाने द्विकद्विकभंगा भवंति बद्धस्य । इतरस्यापि ज्ञातव्याः त्रिकत्रिकैकत्रित्रयः ॥ मोदल पंचस्थानदोळेरडेरडु भंगंगळपुष्व । बद्धायुष्यंगे यितराबद्धायुष्यंगे मूरु मूरुं ओंदु ५ मूरुमूरुं भंगंगळरियल्पडुवुवु ॥ विदियस्स वि पणठाणे पण पण तिग तिण्णि चारि बद्धस्स । इयरस्स होंति या चउ चउ इगि चारि चत्तारि ||३८० || द्वितीयस्यापि पंचस्थाने पंच पंच त्रिकत्रयश्चत्वारो बद्धस्येतरस्य भवंति ज्ञेयाश्चतुश्चतुरेक श्चत्वारश्चत्वारः ॥ द्वितीयपंक्ति पंचस्थानं गलोल बद्वायुष्यंगे क्रमदिदं पंच पंच त्रिकत्रिकचतुब्भंगंगळपुवित रंगबद्धायुगे चतुश्चतुरेक चतुश्चतुर्भगंगळ ज्ञातव्यंगळ ॥ आदिल दस सरिसा भंगेण य तदिय दसय ठाणाणि । बिदियस चउत्थस्स य दस ठाणाणि य समा होति ॥ ३८१ || ६२५ आद्यतनदशसु सदृशानि भंगेत व तृतीयदशकस्थानानि । द्वितीयायाश्चतुर्थ्याश्च दश - १५ स्थानानि च भंगैः समानि भवंति ॥ प्रथमपंचस्थानेषु बद्धायुष्कस्य द्वौ द्वौ भंगौ भवतः । अबद्धायुष्कस्य च त्रयस्त्रयः एकस्त्रयस्त्रयो भवंति || ३७९ ॥ द्वितीयपंक्तेः पंचस्थानेषु बद्धायुष्कस्य पंत्र पंच त्रयस्त्रयश्चत्वारो भंगा भवंति । इतरस्य चत्वारश्चत्वार एकश्चत्वारश्चत्वारो भवंति ॥ ३८० ॥ आद्येषु बद्धावद्धायुष्कदशस्यानेषूक्तभंगैः तृतीयबद्धाबद्धायुष्कदशस्थानभंगाः समानाः । द्वितीयपंक्तेर्वद्धाबद्धायुष्कदशस्थानोक्तभंग: चतुर्थ पंक्तेर्वद्धाबद्धायुष्कदशस्थानभंग ः समानाः । एवमसंयतस्य चत्वारिंशत्स्थानेषु होते हैं । उनमें से भी मिश्रमोहनीय घटानेपर चौथे आठ स्थान होते हैं। उनमें से भी सम्यक्त्व मोहनीय घटानेपर पाँचवें आठ स्थान होते हैं। इस तरह सब मिलकर असंयतमें चालीस सत्त्वस्थान होते हैं || ३७८ || आगे दो गाथाओंसे इनमें भंग कहते हैं प्रथम पंक्ति सम्बन्धी बद्धायुके पाँच स्थानोंमें दो-दो भंग होते हैं । अबद्धायुके पाँच स्थानों में क्रम से तीन-तीन, एक, तीन-तीन भंग होते हैं ||३७९ || Jain Education International १० For Private & Personal Use Only २० दूसरी पंक्ति सम्बन्धी बद्धायुके पाँच स्थानों में क्रमसे पाँच-पाँच, तीन-तीन, चार भंग होते हैं । अवद्धाय पाँच स्थानों में क्रमसे चार-चार, एक, चार भंग होते हैं ॥ ३८० ॥ ३० पहली पंक्ति सम्बन्धी पाँच बद्धायु और पाँच अबद्धायुके दस स्थानों में जो भंग कहे हैं। उन्हीं के समान तीसरी पंक्तिके दस स्थानोंमें भंग जानना । तथा दूसरी पंक्ति सम्बन्धी पाँच क- ७९ २५ www.jainelibrary.org

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