Book Title: Gommatasara Karma kanad Part 1
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

View full book text
Previous | Next

Page 673
________________ कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका प्रथम पंक्तिद्वयदस्थानपंचकद्वयं तीर्थमुमाहारकचतुष्टयमुं सहितमवकुं । द्वितीयपंक्तिद्वयव स्थानपं वकद्वयं तीर्थंकर प्रकृतिसत्व रहित मक्कुमाहारकचतुष्टयसहित मक्कुं । तृतीयपंक्तिद्वयद स्थानपंचकद्वयं तीर्थंकर प्रकृतिसत्वसहित मक्कुमा हारकचतुष्टयरहितमक्कुं । चतुर्थ पंक्तिद्वयस्थानपंचकद्वयं तीर्थंकरमुमाहारकचतुष्टयमुं सत्वरहितमक्कुमंतु चतुः प्रतिस्थानमरियल्पडुगुं ॥ अनंतरं दुगछक्कादि सत्वहीन प्रकृतिगळं पेळदपरु : अण्णदर आउसहिया तिरियाऊ ते च तह य अणसहिया । मिच्छं मिस्सं सम्मं कमेण खविदे हवे ठाणा || ३७८ || अन्यतरायुः सहितं तिथ्यं वायुस्ते च तथा चानंतानुबंधिसहितं मिथ्यात्वं मित्रं सम्यक्त्वं क्रमेण क्षपिते भवेत् स्थानं ॥ ६२३ अन्यतरायुष्यमों दु सहितमाइ तिर्य्यगायुष्यमा येरडुमनंतानुबंधिसहितमादारु मी या १० मिथ्यात्वमं कूडि येळ मी येळं मिश्रप्रकृति गूडि येंदु ई येंटुं सम्यक्त्वप्रकृतिगूडि ओ भत्तुं प्रकृतिगळु रहितंगळवु । संदृष्टि : -- Jain Education International ५ प्रथम पंक्तिद्वयस्य स्थानपंचकद्वयं तीर्थाहारकचतुष्कसहितं भवति । द्वितीयपंक्तिद्वयस्य स्थानपंचकद्वयं तीर्थरहितमाहारकचतुष्टयसहितं भवति । तृतीयपंक्तिद्वयस्य स्थानपंचकद्वयं तीर्थसहितमाहारकचनुष्टयरहितं भवति । चतुर्थ पंक्तिद्वयस्य स्थानपंचकद्वयं तीर्थंकराहारकचतुष्टय रहितं भवति । एवं चतुः प्रकृतिकं स्थानं १५ ज्ञातव्यं ।। ३७७ ।। अथ दुगछक्कादिहीनप्रकृतीराह तिर्यगायुरन्यतरायुः सहितं तद्वितीयमनंतानुबंधिसहितं तत्षट्कं मिथ्यात्वसहितं तत्सप्तकं मिश्रसहितं तदष्टकं सम्यक्त्वसहितनवकमित्यपनीतप्रकृतयो भवति ।। ३७८ ।। अथ भंगान् गाथाद्वयेनाह - बद्धा और अबद्धायुकी प्रथम दो पंक्तियोंके जो पाँच-पाँच स्थान हैं वे तीर्थंकर और २० आहारक चतुष्क सहित हैं । बद्धायु और अबद्धायुकी दूसरी दो पंक्तियोंके पाँच-पाँच स्थान तीर्थंकर रहित किन्तु आहारक चतुष्क सहित हैं । बद्धायु और अबद्धायुकी तीसरी दो पंक्तियोंके पाँच-पाँच स्थान तीर्थकर सहित किन्तु आहारक चतुष्टय रहित हैं । बद्धायु और अबद्धायुकी चतुर्थ दोनों पंक्तियोंके पाँच-पाँच स्थान तीर्थंकर तथा आहारक चतुष्कसे रहित हैं । अर्थात् प्रथम पंक्तिसे शून्य घटानेसे मतलब है कि उसमें तीर्थंकर और आहारक चतुष्क २५ हैं। दूसरी में एक घटानेसे मतलब है कि उसमें तीर्थंकर नहीं है, तीसरी में चार घटाने से मतलब है कि उसमें आहारक चतुष्क नहीं है और चौथी में पांच घटानेसे मतलब है कि उसमें तीर्थंकर भी नहीं है और आहारक चतुष्क भी नहीं है || ३७७ || इसे नीचे रचना द्वारा स्पष्ट किया जाता है। प्रत्येक कोठे में ऊपर प्रकृतियोंका प्रमाण है. उसके नीचे भंगोंका प्रमाण है । For Private & Personal Use Only ३० www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 671 672 673 674 675 676 677 678 679 680 681 682 683 684 685 686 687 688 689 690 691 692 693 694 695 696 697 698