Book Title: Gommatasara Karma kanad Part 1
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 638
________________ ५८८ गो० कर्मकाण्डे योग्यसत्वप्रकृतिगळ, नूरनाल्वत्तें' टप्पुवु १४८॥ अल्लि असंयताविनवगुणस्थानंगळप्पुवल्लि गुणस्थानदाळ पेन्दते सत्वप्रकृतिगळप्पुवु । केवलदर्शनमार्गयोळु केवलज्ञानवंते सत्वप्रकृतिगळप्पुवु । सयोगायोगिगुणस्थानद्वितयमक्कं । लेश्यामाग्र्गयोळ "किण्ह दुग वामे ण तित्थयरसतं" एंदितु कृष्णनीललेण्याद्वयदोळु सत्वप्रकृतिगळ नूर नाल्वत्ते टप्पुवु १४८ ॥ अल्लि मिथ्यादृष्टयावि ५ नाल्कु गुणस्थानंगळप्पुवल्लि मिथ्याष्टियोळ तीर्थमसत्वमक्कु। सत्वप्रकृतिगळु नूर नाल्वत ळप्पु १४७ । वे दोड तीर्थसत्वयुक्तमनुष्यासंयतंगशुभलेश्यात्रयदोलु तीर्थबंधप्रारंभमिल्लमत्तलानुं बद्धनरकायुष्यंगे द्वितीयतृतीयपृथ्विगळोळु पुटुवडे सम्यक्त्वमं किडिसि मिथ्यादृष्टियागि कपोतलेर्यायदं पोकुमप्पुरिदमी कृष्णनीललेश्यावयबोळ मिध्यादृष्टि तीर्थसत्वमुळ्ळनिल्ले. दरियल्पडुगुं। संदृष्टि : कृ० नी० योग्य १४८ | • मिसा | मि || स १४७/१४५ |१४७ १४८ अ । ती १।३ ती १ ० । १० दर्शनमार्गणायां चक्षुरचक्षुर्दर्शनयोः सत्त्वमष्टचत्वारिंशच्छतं । गुणस्थानान्याधानि द्वादश । संदृष्टिस्त दुक्तैव । अवधिदर्शने सत्त्वमष्टचत्वारिंशच्छतं गुणस्थानान्यसंयतादीनि नव । रचना तदुक्तैव । केवलदर्शने तज्ज्ञानवत् । लेश्यामार्गणायां कृष्णनीलयोः सत्वमष्टचत्वारिंशच्छतं गुणस्थानानि मिथ्यादृष्टयादीनि चत्वारि। तत्र किण्हदुगवामे ण तित्थयरसत्तमितिमिथ्यादृष्टो सत्त्वं सप्तचत्वारिंशच्छतं । अशुभलेश्यात्रये तीर्थबंधप्रारंभाभावात् । १ बदनारकायुषोऽपि द्वितीयतृतीयपृथ्व्योः कपोतलेश्ययैव गमनात् । संदृष्टिः कृष्ण नी= योग्य १४८ व्यु मि : सा | मि स | १४७ १४५/ १४७ १४८ अ । ती ३ / ती १ . दर्शन मार्गणामें चक्षुदर्शन और अचक्षुदर्शनमें सत्त्व एक सौ अड़तालीस । गुणस्थान आदिके बारह । रचना गुणस्थानवत् । अवधिदर्शनमें सत्त्व एक सौ अड़तालीस । गुणस्थान असंयत आदि नौ । रचना गुणस्थानवत्। केवलदर्शनमें केवलज्ञानकी तरह जानना।। लेश्यामार्गणामें कृष्ण और नीलमें सत्त्व एक सौ अड़तालीस । गुणस्थान मिध्यादृष्टि २० आदि चार । कृष्ण नीलमें मिथ्यादृष्टि गुणस्थानमें तीर्थंकरको सत्ताका अभाव कहा है, क्योंकि तीन अशुभ लेश्याओंमें तीर्थकरके बन्धका प्रारम्भ नहीं होता। तथा जिसने नरकायुका बन्ध किया है वह मरकर दूसरी तीसरी पृथ्वीमें यदि जाता है वो कपोतलेश्यासे ही जाता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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