Book Title: Gommatasara Karma kanad Part 1
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 639
________________ कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका कपोत लेश्या मागंणेयो, योग्यसत्वप्रकृतिगळ, तूर नाल्वर्त्तटु १४८ । गुणस्थानंगळ नाकप्पुवल्लि मिथ्यादृष्टियोळ, सत्वंगळ, नूर नाग्वत्ते दु १४८ । सासादननोळ, नूर नावत्तदु १४५ । मिश्रनो नूर नात्वत्तळ १४७ ॥ असंयतनोळ सत्वंगळ, नूर नावत्ते टु १४८ । संदृष्टि: कपोतयोग्य १४८ । ܒ ७ व्यु स अ मि सा मि अ ११४८ | १४५ | १४७ | १४८ | ३ |१ ० Jain Education International ० तेजःपद्मलेश्यामार्गेणाद्वयदोळु सत्यप्रकृतिगळ, तूर नात्वतें ट १४८ । गुणस्थानंगळेळप्पुत्रल्लि "सुहतिलेस्सिय वामे विण तित्थयरसतं" ये दितु तेजःपद्मलेशयामिथ्यादृष्टियो ती त्यंसत्व मिल्लेकें दोडे नरकगतिगमनाभिमुखसंक्लिष्टजी बंगलगल्लदे सम्यक्त्वविराधनेयिल्ल कारणमागि शुभलेश्यात्रययुक्तं सम्यक्त्वविराधनेयिल्लप्पुरमी शुभलेश्याद्वयदोळ तीर्थसत्वमुळ्ळ मिथ्यादृष्टियिल्ले दरियत्वडुगुमप्पुर्दारदं सत्वप्रकृतिगळु नूरनात्वत्तेळ, १४७ । सासादननोळ. सत्वंगळु नूर नावत्तदु १४५ । मिश्रनोलु सत्वप्रकृतिगळ, नूरनात्वत्तेळु १४७ । असंयत- १० नोळ सत्बंगळु नूरनावत्ते टु १४८ । देश संयतनोंळ, सत्यंगळ, नरकायुष्यं पोरगागि नूरनावत्तेळ १४७ । प्रमत्तसंयतनोळ, नरकतिर्ध्वगायुर्द्वयं पोरगागि सत्वंगळु नूर नाल्वत्तारु १४६ । अप्रमत्तनोळ सत्वंगळ, नूर नाल्वत्तारु १४६ । संदृष्टि : ५८९ कपोतश्यायां मिथ्यादृष्टौ सत्त्वमष्टचत्वारिंशत् शतं । सासादने पंचचत्वारिंशत् शतं । मिश्र सप्तचत्वारिंशत् शतं । असंयते सर्वं । तेजःपद्द्मलेश्ययोः सत्वमष्टचत्वारिंशत् शतं गुणस्थानानि सप्त । तत्र १५ सुहतिय लेस्सियवामेविण तित्थयरसत्तमिति तन्मिथ्यादृष्टो तीर्थसत्त्वं नास्ति, कुतः ? नरकगमनाभिमुख संक्लिष्टेम्योऽन्येषां सम्यक्त्वविराधनाभावेन शुभलेश्यात्रयं तद्विराधनासंभवात् । तेषु तन्मिथ्यादृष्टौ सत्त्वं सप्तचत्वारिंशत् शतं । सासादने पंचचत्वारिंशत् शतं । मिश्रे सप्तचत्वारिंशच्छतं । असंयते अष्टचत्वारिच्छतं देशसंयते नरकायुविना सप्तचत्वारिशच्छतं । प्रमत्ते नरकतिर्यगायुषी विना षट्चत्वारिंशत् शतं । अप्रमत्तेऽपि तथैव षट्चत्वा ५ अतः कृष्णनील में मिध्यादृष्टि गुणस्थान में एक सौ सैंतालीसका सत्व होता है। कपोत लेश्या में २० मिध्यादृष्टि में सत्व एक सौ अड़तालीस । सासादन में सत्त्व एक सौ पैंतालीस । मिश्र में सत्त्व एक सौ सैंतालीस । असंयत में एक सौ अड़तालीस । तेज और पद्मश्यामें सत्व एक सौ अड़तालीस । गुणस्थान सात । आगम में कहा है कि शुभ तीन लेश्याओं में मिथ्यादृष्टि गुणस्थानमें तीर्थंकरका सत्त्व नहीं होता, अतः मिथ्यादृष्टि में तीर्थंकर की सत्ता नहीं है क्योंकि जो तीर्थंकरकी सत्तावाला नरक जानेके अभिमुख २५ होता है उसके ही सम्यक्त्वकी विराधना होती है । अतः तीन शुभलेश्याओं में सम्यक्त्वकी विराधना संभव नहीं है। इससे मिथ्यादृष्टि में सत्त्व एक सौ सैंतालीस । सासादनमें एक सौ पैंतालीस । मिश्र में एक सौ सैंतालीस । असंयत में एक सौ अड़तालीस | देशसंयत में नरकायुके बिना एक सौ सैंतालीस । प्रमत्त में नरकायु तिर्यंचायुके बिना एक सौ छियालीस । अप्रमत्तमें For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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