Book Title: Gommatasara Karma kanad Part 1
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 653
________________ १० कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका नरायुष्यमुमुच्चैर्गोत्रमुं सहितमागि हतो भत्तु मनुष्यद्विकसहितमादिप्पत्तोंदु रहितमाद सर्वसत्व प्रकृतिगळु सत्वस्थानमक्कुमंतु बद्धायुष्यनोळु सत्वस्थानंगळु पत्तु १०। अबद्धायुष्यनोळु भुज्यमानायुष्यमो दे सत्वमप्पुदरिना पत स्थानंगळ प्रकृतिगळोळो दो दायुष्यमं कळेदु शेषप्रकृतिगळ सत्वस्थानंग पत्तु १०। अंतिप्पत्तु सत्वस्थानंगळोळु पुनरुक्तस्थानंगळ मुंवे पेळल्पडुवववं कळेदु शेषसत्वस्थानंगळ पदिने टप्पु १८ ववक्क भंगंगळय्वत्तप्पुवदेत दोर्ड रचनेयो पेळ्द भंगंगळगनु- ५ सारियागि परमगुरूपदेशदिदं भंगंगळु पेळल्पडुववल्लि प्रारबद्ध नरकायुष्यनप्प मनुष्य मिश्यादृष्टि गृहीतवेदकसम्यक्त्वनसंयतगुणस्थानत्ति केवलिद्वयोपांतदोळु षोडशभावनापरिणतं तीत्थंकरपुण्यबंधमं प्रारंभिसि तीर्थसत्कर्मनागि मरणकालदोळ भुज्यमानमनुष्यायुष्यमंतर्मुहूर्त्तमात्रावशेषमादागळु सम्यग्दर्शनमं विराधिसि मिथ्यादृष्टियादातंगे तिय्यंगायुष्यमुं देवायुष्यमुं रहितमागि रचतुष्कं चेति ता एव सप्त, सम्यक्त्वप्रकृत्याष्टो, पुनर्मिश्रप्रकृत्या नव, देवद्विकेनैकादश, नारकषट्केन सप्तदश, नरायुरुच्चैर्गोत्राम्यामेकान्नविंशतिः, मनुष्यद्विकेनकविंशतिः, तेषामष्टादशस्थानानां पंचाशद्भगाः रचनानुसारेण परमगुरूपदे शैनोच्यते तत्र कश्चित् प्रारबद्धनरकायुर्मनुष्यो मिथ्यादेष्टिगृहीतवेदकसम्यक्त्वोऽसंयतः केवलिद्वयोपांते षोडशभावनाभिस्तीर्थबंध प्रारम्य तत्सकर्मा भूत्वा मरणकाले भुज्यमानायुष्यंतर्मुहूर्तेऽवशिष्टे मिथ्यादृष्टितिस्तस्य का सत्त्व होता है। किसीके देवायु, तियंचायु और आहारक चतुष्कके बिना एक सौ बयालीसका सत्त्व होता है। किसीके कोई दो आयु, आहारक चतुष्क और तीर्थंकरके बिना एक सौ इकतालीसका सत्त्व होता है। किसीके पूर्वोक्त सात और सम्यक्त्व मोहनीयके बिना एक सौ चालीसका सत्त्व होता है। किसीके पूर्वोक्त आठ और मिश्र मोहनीयके बिना एक सौ उनतालीसका सत्त्व होता है। किसीके पूर्वोक्त नौ और देवगति-देवानुपूर्वी बिना एक सौ सैतीसका सत्त्व होता है। किसीके पूर्वोक्त ग्यारह तथा नरकगति, नरकानुपूर्वी, . वैक्रियिक शरीर, अंगोपांग बन्धन संघात, इस नारकषटकके बिना एक सौ इकतीसका सत्त्व होता है। किसीके पूर्वोक्त सतरह, नरकायु, उच्चगोत्र इन उन्नीसके बिना एक सौ उनतीसका सत्त्व होता है। किसीके पूर्वोक्त उन्नीस और मनुष्यगति, मनुष्यानुपूर्वीके बिना एक सौ सत्ताईसका सत्त्व होता है। इस प्रकार ये दस स्थान बद्धायुके जानना। अबद्धायुके केवल मुज्यमान आयुकी ही सत्ता होती है, बध्यमान आयुकी सत्ता नहीं होती। अतः पूर्वोक्त सत्त्वमें . एक-एक बध्यमान आयु हीन करनेसे अबद्धायुके भी दस स्थान होते हैं। उनमें से दो पुनरुक्त । स्थान घटानेपर मिथ्यादृष्टिमें अठारह स्थान होते हैं। अर्थात् मिथ्यादृष्टि गुणस्थानमें एक जीवके एक कालमें उक्त प्रकारसे प्रकृतियोंकी सत्ता पायी जाती है। इससे भिन्न प्रकारसे कभी भी नहीं पायी जाती। अब इन अठारह स्थानोंके पचास भंग परमगुटके उपदेशानुसार कहते हैं ___३० जिसने पहले नरकायुका बन्ध किया है वह मिथ्यादृष्टि मनुष्य वेदक सम्यक्त्वको ग्रहण करके असंयत गुणस्थानवर्ती होकर केवली श्रुतकेवलीके पास में सोलह भावनाओंके १. व देशादुच्यते । २. ब°ष्टिः वेदकसम्यग्दृष्टी संयतो भूत्वा । ३. ब तत्सत्व सन् मरणे मुं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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