Book Title: Gommatasara Karma kanad Part 1
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith
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६२०
गौ० कर्मकाण्डे
विवक्षितभुज्यमानायुष्यमों दल्लदितरायुस्त्रितयं तीर्थमुमंतु प्रकृतिसत्वरहितमागि नूरनाल्वत्तु नूरनाल्वत्तु नाल्कु प्रकृतिसत्वस्थानमक्कुं। चतुर्गतिजरुगळ भेददि नाल्कु भंगमक्कु । संदृष्टि :
१४५
१४४
द्वितीयबद्धायुःसत्वस्थानदोळु विवक्षितभुज्यमानबद्धयमानायुद्वितयमुं तीर्थमुमनंतानुबंधि कषायचतुष्टयमुमंतु सप्तप्रकृतिगळु सत्वरहितमागि नूरनाल्वत्तोंदु प्रकृतिसत्वस्थानदोळु मुंपेन्द पुनरुक्तसमभगंगळं कळेदु शेषपंचभंगंगठप्पुवल्लि अबद्धायुष्यनोळु विवक्षित भुज्यमानायुष्यमों. दल्लदितरायुस्त्रितय, तीर्थमुमनंतानुबंधिकषायचतुष्टयमुमंतेष्टुं प्रकृतिगळु सत्वरहितमागि नूर नाल्वत्त प्रकृतिसत्वस्थानमक्कुमल्लि नाल्कुं गतिगळ भेददिदं नाल्क भगंगळप्पुवृ । संदृष्टि :
|ब १४१
अ
१४०
तृतीयबध्यमानायुः सत्वस्थानदोळु तीर्थमुं भुज्यमानबध्यमानायुद्वितयमल्लादतरायुर्वितयमुमाहारकचतुष्टयमुमंतेलं प्रकृतिगळु सत्वरहितमागि नूरनाल्वत्तो दुं प्रकृतिसत्वस्थानमक्कुमल्लि १० पुनरुक्तसमविहीनपंचभंगंगळप्पुवल्लि अबद्धायुष्यसत्वस्थानदोळु भुज्यमानायुः सत्वमल्लदितरायु
स्त्रयमुं तीर्थमु आहारक चतुष्टयमुमंत टु प्रकृतिसत्वरहितमागि नूरनाल्वत्तुप्रकृतिसत्वस्थानमक्कुमल्लि गतिचतुष्टयभेददिदं नाल्कुं भंगंगळप्पुवु । संदृष्टि :
अबद्धायुःस्थाने चतुर्गतिकभेदाच्चत्वारो भंगा। संदृष्टिः
भ
४
न
एवं द्वितीयतृतीयचतुर्थबद्धाबद्धायुःस्थानेष्वपि पंच चत्वारो भंगा ज्ञातव्याः । अत्र मिश्रेऽनंतानुबंध्यसत्त्वं १५ कथमिति चेत् असंयतादिचतुर्वेकत्र करणत्रयेण तच्चतुष्कं विसंयोज्य दर्शनमोहक्षपणानभिमुखस्य संक्लिष्ट
भंग होते हैं। अबद्धायुके चारों स्थानोंमें भुज्यमान चार आयुकी अपेक्षा चार-चार भंग होते हैं। __ शंका-मिश्रमें अनन्तानुबन्धीका असत्त्व कैसे है ?
समाधान-असंयत आदि चार गुणस्थानों में से किसी एकमें तीन करणोंके द्वारा २० अनन्तानुबन्धीका विसंयोजन किया। उसके पश्चात् दर्शनमोहनीयकी क्षपणा तो न कर
सका और संक्लेश परिणामके द्वारा मिश्र मोहनीयके उदयसे मिश्र गुणस्थानवर्ती हुआ।
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