Book Title: Gommatasara Karma kanad Part 1
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 632
________________ ५८२ व्यु मि० सा० मि० स | १४८ | १४५ | १४७ अ ० ३ १ व्यु स अ ← अ १ Jain Education International आहारक काययोगदोळं तन्मिश्रकाययोगदोळं नरकतिथ्यंगायुर्द्वयवज्जितमागि प्रमत्तसंयतनोळ नूरनावतार सत्यमक्कु १४६ । वैक्रियिककाययोगदोळ नूर नाल्वत्ते टु प्रकृतिगळ सत्यमक्कु १४८ महिल मिथ्यादृष्टि नूरवात्पत्ते टु प्रकृतिसत्व मक्कुमेक दोड तोत्थंसत्वयुक्तं तृतीय पृथ्विपथ्यंतं गमनमुपुर्दारदं । सासादननोळु नूर नात्वतथ्दु प्रकृतिसत्वमक्कु १४५ | मसत्वंगळु मूरु ५ ३ । मिश्रनो नूरनात्वते सत्वमक्कु १४७ मसत्वमोंदु १ । असंयतनोळु नूर नाल्वते टु सत्वमक्कु । १४८ । संदृष्टि : वैक्रियिक काययोग्य १४८ -- सा मि अ स १४८ १४५ १४७ १४८ ० दे १ १४८ | १४७ | १४६ | o १ २ अ गो० कर्मकाण्डे १ १ १ १ स १ उ क्षी १६ ८५ १०६ १०५ | १०४ | १०३ । १०२ । १४६ | १३८ | १०१ ४२ ४३ ४४ ४५ | ४६ २ । १० । ४७ ६३ Я о ० अ० ८ अ ० अ १६ ८ १ १ ६ १४६ | १३८ | १३८ | १२२ | ११४ | ११३ ११२ २ १० १० | २६ ३४ ३५/३६ ११३|११२ | १०६ ३५ | ३६ | ४२ मनो ४ । वाग्योग ४ । औदारिक काययोग १ | योग्य १४८ । मि सा मि अ १ द १ Яо अ८ अ० अ १६ ८ १ | १४८ | १४५ | १४७ | १४८ | १४७ | १४६ | १४६ | १३८ | १३८ | १२२ |११४ o ३ | १ १ २ २ १० १० २६ ३४ O ३ १ ० <! १ १ सू. १ ० क्षो १६ | १०५ | १०४ | १०३ | १०२ | १४६ |१३८ |१०१ ८५ ४३ ४४ ४५ | ४६ २ । १० ४७ ६३ स० उ आहारकतन्मिश्र योर्न र कतिर्यगायुरभावात् प्रमत्ते षट्चत्वारिंशच्छतं । वैक्रियिकयोगेऽष्टचत्वारिंशच्छतं । तत्र मिथ्यादृष्टौ सत्त्वं सर्वं तीर्थंकरसत्वयुक्तस्य तृतीयपृथ्व्यंतं गमनात् । सासादने पंचचत्वारिंशच्छतं सत्त्वं, For Private & Personal Use Only स ऊपर टीकाके अदूसार जानना । आहारक आहारक मिश्रमें नरकायु तिर्यंचायुका असत्त्व १० होने से सत्व एक सौ छियालीस है । गुणस्थान एक प्रमत्त ही होता है। वैक्रियिक योग में सत्व एक सौ अड़तालीस । वहाँ मिध्यादृष्टिमें सबका सत्त्व है क्योंकि तीर्थकर की सत्तावाला मरकर नरक में तीसरी पृथ्वी तक जाता है । सासादनमें सत्व एक सौ पैंतालीस, असत्व www.jainelibrary.org

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