Book Title: Gommatasara Karma kanad Part 1
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 621
________________ कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका ५७१ मूवत्तें टु १३८ प्रकृतिसत्वमक्कु । क्षपकश्रेण्यपेयिदं प्रयमभागदोळु नूर मूवत्तेदु प्रकृतिसत्वमक्क १३८ । द्वितीयभागदोळ नूरिप्पत्तरडु प्रकृतिसत्वमक्कु १२२ । मेके दोडे आ प्रथमभागचरमसमयदो षोडश प्रकृतिगळ क्षपिसल्पटुवप्पुरिदं । तृतीयभागदोळमत मध्यमाष्टकषायरहितमागि नूर पदिनाल्कु प्रकृतिसत्वमक्कु ११४ । चतुर्थभागदोजु षंढवेदरहितमागि नूर पदिमूरु प्रकृतिसत्वमक्कु ११३। पंचमभागदो स्त्रीवेदरहितमागि नूर हन्नरडु प्रकृतिसत्वमक्कु ११२। ५ षष्ठभागदोळु षण्णोकषायज्जित नूरारुं प्रकृतिसत्वमक्कु १०६ । सप्तमभागदोछ पुंवेदरहित. मागि नूरय्दु प्रकृतिसत्वमक्कु १०५ ॥ अष्टम भागदोळ संज्वलनक्रोधज्जितचतुरुत्तरशतप्रकृतिसत्वमक्कु १०४ ॥ नवमभागदोळु संज्वलनमानरहितत्र्यधिकशतप्रकृतिसत्वमक्कु १०३ । सूक्ष्मसांपरायगुणस्थानदोळ संज्वलनमायारहितमागि नूरेरडु प्रकृतिसत्वमक्कु १०२। मुपशमश्रेण्यपेयिंदं नूर नाल्वत्तार १४६ नूरमूवत्तेंदु १३८ प्रकृतिसत्वमक्कु । मुपशांतकषायगुणस्थानदोळ १० नूर नाल्वत्तारुं १४६ नूर मूवत्तें'टु १३८ प्रकृतिसत्वमक्कु। क्षीणकषायनोळु संज्वलनलोभरहित. मागि नूरोंदु प्रकृतिसत्वमक्कुं १०१। सयोगिकेवलियोळु निद्राप्रचलादि षोडशप्रकृतिरहितमागि ण्यपेक्षया षट्चत्वारिंशच्छतं अष्टत्रिशच्छतं च क्षपकश्रेण्यपेक्षया प्रथमभागे अष्टत्रिशच्छतं द्वितीयभागे द्वाविंशतिशतं षोडशानां तत्प्रथमभागचरमसमये एव क्षपणात् । तृतीयभागे मध्यमाष्टकषायाभावाच्चतुर्दशशतं । चतुर्थभागे पंढवेदाभावात्तत्त्रयोदशशतं । पंचमभागे स्त्रीवेदाभावाद् द्वादशशतं । षष्टमभागे षण्णाकषाया- १५ भावात् षंडुत्तरशतं । सप्तमभागे पुंवेदाभावात्पंचोत्तरशतं । अष्टमभागे संज्वलनक्रोधाभावाच्चतुरुत्तरशतं । नवमभागे संज्वलनमानाभावात्त्युत्तरशतं । सूक्ष्मसांपरांयें संज्वलनमायाऽभावात् द्वयुत्तरशतं । उपशमश्रेण्यपक्षेया षट्चत्वारिंशच्छतं अष्टचत्वारिंशच्छतं च । उपशांतकषाये द्वाचत्वारिंशच्छतं, अष्टत्रिशच्छतं च । क्षीणकषाये संज्वलनलोभाभावादेकोत्तरशतं । सेयोगे निद्राप्रचलादिषाडशाभावात् पंचाशीतिः । अयोगे द्विचरमसमक्षायिक सम्यग्दृष्टीके एक सौ अड़तीस । जिस मनुष्यने परभवकी आयु नहीं बाँधी है और २० क्षायिक सम्यग्दष्टी है उसके असंयत आदि चार गणस्थानों में भी एक सौ अडतीसका सत्त्व होता है। अनिवृत्तिकरणमें उपशम श्रेणिकी अपेक्षा सत्त्व एक सौ छियालीस और एक सौ अतीस । क्षपकणिकी अपेक्षा प्रथम भागमें एक सौ अड़तीस। और इस प्रथम भागके अन्तिम समयमें सोलह प्रकृतियोंका क्षय होनेसे दूसरे भागमें सत्त्व एक सौ बाईस । और इस दूसरे भागके अन्तिम समयमें मध्यकी आठ कषायोंका क्षय होनेसे तीसरे भागमें सत्त्व २५ एक सौ चौदह । इसी प्रकार चतुर्थ भागमें नपुंसक वेदका अभाव होनेसे सत्त्व एक सौ । तेरह । स्त्रीवेदका अभाव होनेसे पंचम भागमें सत्त्व एक सौ बारह । छह नोकषायोंका अभाव होनेसे छठे भागमें सत्त्व एक सौ छह । पुरुषवेदका अभाव होनेसे सातवें भागमें एक सौ पाँच । संज्वलन क्रोधका अभाव होनेसे आठव भागमें एक सौ चार । संज्वलन मानका अभाव होनेसे नवम भागमें एक सौ तीन । __ सूक्ष्म साम्परायमें संज्वलन मायाका अभाव होनेसे एक सौ दो। उपशमश्रेणिकी अपेक्षा सत्त्व एक सौ छियालीस और एक सौ अड़तीस । उपशान्त कषायमें एक सौ छियालीस और एक सौ अड़तीस । क्षीण कषायमें संज्वलन लोभका अभाव होनेसे एक सौ एक । १. व षट्चत्वा । २. ५ सयोगे अयोगे। ३० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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