Book Title: Gommatasara Karma kanad Part 1
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith
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नोआगमभावसुं मत्तं तंतम्म कर्मफलसंयुतनप्प जीवनेयक्कुं । पुद्गलविपाकिगळगे नोआगमभावमिल्लेकॅबोडे पुद्गलविपार्किंगळदयदोळ साक्षात्सुखाविगळनुत्पत्तियेयक्कुमल्लिमों दु विशेष मुंटदाउदोडे जीवविपाकिगल सहायत्वदवं सुखाद्युत्पादकत्व मुंटेंबिदु । पुद्गल विपाकिनामकर्मोदयदोळु देहवर्गणेगळुपादानमक्कुं । सुखदुःखंगळगे तद्वणानिमित्त जीवविपाकियवकुं ॥ इंतु भगवदर्हत्परमेश्वरचारुचरणारविंदद्वंद्व वंदनानंदित पुण्यपुंजायमानश्रीमद्राय राजगुरु१० मंडलाचार्य्यं महावादवादीश्वररायवा दिपितामहसकलविद्वज्जनचक्रवत्ति श्रीमदभयसूरिसिद्धांतचक्रवत्तश्रीपाद पंकजरजोरंजितललाटपट्ट् श्रीमत्केशवण्ण विरचितगोम्मटसारकर्णाटवृत्ति जीवतत्वप्रदीपिकेयो कर्मकांडप्रकृतिसमुत्कीर्त्तनं प्रथमाधिकारं व्याख्यातमावुवु ॥
भावः ॥
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गो० कर्मकाण्डे
आगमभावो पुण सगसगकम्मफलसंजुदो जीवो । पोग्गलविवाइयाणं णत्थि खु णोआगमो भावो ॥ ८६ ॥
नोमागमभावः पुनः स्वस्वकर्मफलसंयुतो जीवः । पुद्गलविपाकिनां नास्ति खलु नोआगमो
नोआगमभावः पुनः स्वस्वकर्मफलसंयुक्तजीवो भवति । पुद्गलविपाकिनां खलु नोआगम भावकर्म नास्ति तदुदयजीवविपाकि सहायं विना साक्षात्सुखाद्यनुत्पत्तेः ॥८६॥
इत्याचार्यनेमिचन्द्र रचितायां गोम्मटसारापरनामपञ्चसंग्रहवृत्तौ तत्त्वदीपिकाख्यायां कर्मकाण्डे प्रकृतिसमुत्कीर्तननाम प्रथमोऽधिकारः ॥ १ ॥
अपने-अपने फलको भोगता हुआ जीव उन उन प्रकृतियोंका नोआगमभाव कर्म है । पुद्गलविपाकी प्रकृतियोंका नोआगमभाव कर्म नहीं होता क्योंकि उनका उदय होते हुए जीवविपाकी प्रकृतियोंकी सहायता बिना साक्षात् सुखादि नहीं होते ॥ ८६ ॥
२० इस प्रकार आचार्य श्री नेमिचन्द्र विरचित गोम्मटसार अपर नाम पंचसंग्रहकी भगवान् अर्हन्त देव परमेश्वरके सुन्दर चरणकमलों की वन्दनासे प्राप्त पुण्यके पुंजस्वरूप राजगुरु मण्डलाचार्य महावादी श्री अमयनन्दी सिद्धान्तचक्रवर्तीके चरणकमलोंकी धूलिसे शोभित लकाटवाले श्री केशववर्णीके द्वारा रचित गोम्मटसार कर्णाटवृत्ति जीवतत्व प्रदीपिकाकी अनुसारिणी संस्कृतटीका तथा उसकी अनुसारिणी पं. टोडरमल रचित सम्यग्ज्ञानचन्द्रिका नामक भाषाटीकाकी अनुसारिणी हिन्दी भाषा टीकामें कर्मकाण्डके अन्तर्गत प्रकृति समुत्कीर्तन नामक पहला अधिकार सम्पूर्ण हुआ ॥ १ ॥
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