Book Title: Gommatasara Karma kanad Part 1
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith
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कर्णाटवृत्ति जोवतत्त्वप्रदीपिका सयलरसरूवगंधेहिं परिणदं चरिम चदुहिं फासेहिं ।
सिद्धादो अभव्वादो अणंतिमभागं गुणं दव्वं ॥१९१॥ सकलरसरूपगंधैः परिणतं चरमचतुभिः स्पर्शः। सिद्धादभव्यादनंतैकभागो गुणं द्रव्यं ।।
सर्वरससर्वरूपसर्वगंधंगळिंदमुं चरमशीतोष्णस्निग्धरूक्षचतुःस्पशंगळिवमुं परिणतमप्पुर्द सिद्धराशियं नोडलुमनंतैकभागमुमप्पुदु । मभव्यराशियं नोडलुमनन्तगुणमुमप्पुदु । मितप्प समय- ५ प्रबद्धद्रव्यं मूलप्रकृतिगळोळेतु पंसल्पडुगुम दोडे पेळ्दपरु :--
आउगभागो थोवो णामागोदे समो तदो अहियो।
घादितिये वि य तत्तो मोहे तत्तो तदो तदिए ॥१९२।। आयुर्भागः स्तोकः नामगोत्रयोः समस्ततोऽधिकः । घातित्रयेऽपि च ततो मोहे ततस्तृतीये ॥
आयुर्भागः आयुष्यकर्मद भागं स्तोकः एल्लवर भागमं नोडलु किरिदक्कु । ततः आ १० आयुर्भागमं नोडलं नामगोत्रयोः नामगोत्रंगळोळ अधिकः अधिकमक्कुमदुवु समः तम्मोळु समनागि पसल्पडुगुं। ततः आ नामगोत्रद्वयद भागमं नोडलु घातित्रये अन्तराय दर्शनावरणज्ञानावरणत्रयदोळु अधिकः अधिकमक्कु । मदु समः तम्मोळु समनागि पसल्पडुगुं। ततः आ घातित्रयद भागमं नोडलं मोहे मोहनीयकमंदोळ अधिकः अधिकमक्कुं। ततः आ मोहनीयव भागमं नोडलु
तत्प्रमाणमाह
१५ सर्वरसरूपगन्धेश्चरमशीतोष्णस्निग्धरूक्षचतुःस्पर्शश्च परिणतं सिद्धराश्यनन्तकभागं अभव्यराश्यनन्तगुणं समयप्रबद्धद्रव्यं भवति ॥१९१॥ तन्मूलप्रकृतिषु कथं विभज्यते ? इति चेदाह
आयुःकर्मणो भागः स्तोकः । नामगोत्रयोः परस्परं समानोऽपि ततोऽधिकः । अंतरायदर्शनज्ञानावरणेषु गये अनादि द्रव्यरूप परमाणुओंको ग्रहण करता है । और किसी समय कुछ सादि द्रव्यरूप और कुछ अनादिद्रव्यरूप परमाणुओंको ग्रहण करता है ।।१९०।।
आगे उस समयप्रबद्धका प्रमाण कहते हैं
वह समयप्रबद्धरूप परमाणुओंका समूह सब रस, सब रूप, सब गन्ध किन्तु शीत, उष्ण, स्निग्ध, रूक्ष चार प्रकारके स्पर्शसे युक्त होता है। उसमें गुरु, लघु, मृदु और कठिन ये चार स्पर्श नहीं होते। तथा उस समयप्रबद्ध में सिद्धराशिके अनन्तवें भाग और अभव्यराशिसे अनन्तगुणे परमाणु होते हैं । इतने परमाणुओंको प्रतिसमय ग्रहण करके कर्मरूप परिण- २५ माता है अर्थात् जीवके भावोंका निमित्त पाकर इतने परमाणु प्रतिसमय स्वयं कर्मरूप परिणमते हैं ॥१९॥
उस समयप्रबद्धका विभाजन मूल प्रकृतियोंमें किस प्रकारसे होता है यह कहते हैं
सब मूल प्रकृतियोंमें आयुकमका भाग थोड़ा है । नाम और गोत्रकर्मका भाग परस्परमें समान होते हुए भी आयुकर्मके भागसे अधिक है। अन्तराय, ज्ञानावरण और दर्शना-.. वरणका भाग परस्परमें समान है तथापि नाम और गोत्रके भागसे अधिक है। उससे ।
१. हच्चल्पडुगु ।
क-२८
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