Book Title: Gommatasara Karma kanad Part 1
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith
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- कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका
५४३
५
वेशसंयतनोळा मूरुं प्रकृतिगळं कळेदुवपुर्वारदं तृतीयकषायचतुष्कमुं ४ नीचैर्गोत्र मुमंत प्रकृतिगगुदयव्युच्छित्तियक्कुं ५ ॥ प्रमत्तसंयतनोळु तन्न गुणस्थानद पंचप्रकृतिगळ्गुदयव्युच्छित्तियक्कुं ५ ॥ अप्रमत्तसंयतनोळु सम्यक्त्वप्रकृति क्षपिसिल्पदपुरिदमदं कळेदु शेष मूरुं प्रकृतिगळ गुदय व्युच्छित्तियक्कुं ३ ॥ अपूर्वकरणं मोदल्गोंडु छक्क छच्चेव इगि दुग सोळस तीसं बारस प्रकृतिगळ्गुवयव्युच्छित्तियक्कुमंतागुत्तं विरलु असंयतगुणस्थानदोळाहारकद्विकमुं २ तीर्थमुमनुदयमक्कुं ३ ॥ उदयंगळु नूर मुरु १०३ ॥ देशसंयतनोळिप्पतुगू डियनुदयंगळिप्पत्तमूरु २३ ॥ उदयंगळे त्तमूरु ८३ ॥ प्रमत्तसंयत गुणस्थानदोळय्कु गूडियनुदयंगळिप्पत्ते टरोल आहारकद्विकमं कळेदुदयंगळो कूडुतं विरलनुदयंगलिप्यत्तारु २६ । उदयंगळेण्भतु ८० ॥ अप्रमत्तगुणस्थानदो गुडियनुदयंगळु मूवत्तों दु ३१ । उदयंगळेप्पत्त ७५ ॥ अपूर्व्वकरण गुणस्थानदोळ मूरुमूडियनुदयंगळ मूवत्तनात्कु ३४ उदयंगळेप्पत्तेरडु ७२ ॥ अनिवृत्तिकरणगुणस्थानदोळा रुगूडियन- १० वयंगळु नाल्वन्तु ४० । उदयंगळरुवत्तारु ६६ ॥ सूक्ष्मसां पराय गुणस्थानदोळारु गुडियनुदयंगळ नात्वत्तारु उदयंगळरुवत्तु ६० ॥ उपशांतकषायगुणस्थानवोळो बुगूडियनुवयंगळ नाव तेल ४७ । उबयंगळय्वत्तो भत्तु ५९॥ क्षीणकषायगुणस्थानवोळे रडु डुगूडियनुदयंगळ नाल्वत्तो भत्तु ४९ ।
संति तेन तत्त्रयस्य तत्सप्तदशभिः सहासंयत गुणस्थाने एव व्युच्छित्तिः २० | देशसंयते तत्त्रयाभावात् तृतीयकषाया नीचैर्गोत्रं चेति पंचैव ५ । प्रमत्ते स्वस्य पंच ५ । अप्रमत्ते सम्यक्त्व प्रकृतेः क्षपितत्वात्त्रयं । अपूर्व- १५ करणादिषु 'छक्कछच्चेव इगिदुगसोलसतीसंवारस' एवं सत्यसंयते आहारकद्विकं तीर्थं चानुदयः । उदयस्त्र्युत्तरशतं १०३ । देशसंयते विशति संयोज्यानुदयस्त्रयोविंशतिः २३ । उदयस्थ्यशीतिः ८३ । प्रमत्ते पंच संयोज्याहारकद्विकोदयादनुदयः षड्विंशतिः २६ । उदयोऽशीतिः ८० । अप्रमत्ते पंच संयोज्यानुदय एकत्रिंशत् ३१ । उदयः पंचसप्ततिः ७५ । अपूर्वकरणे तिस्रः संयोज्यानुदयश्चतुस्त्रिंशत् उदयो द्वासप्ततिः । अनिवृत्तिकरणे षट् संयोज्यानुदयश्चत्वारिंशत् ४० । उदयः षट्षष्टिः ६६ । सूक्ष्मसांपराये षट् संयोज्यानुदयः षट्चत्वारिंशत् ४६ । २० उदयः षष्टिः ६० । उपशांतकषाये एकां संयोज्यानुदयः सप्तचत्वारिंशत् ४७ । उदय एकान्नषष्टिः ५९ ।
नहीं होता । अतः इन तीनोंकी व्युच्छित्ति भी सतरहके साथ असंयत गुणस्थान में होती है अतः असंयत में व्युच्छित्ति बीस २० है । और देशसंयतमें इन तीनका अभाव होनेसे तीसरी कषाय चार और नीचगोत्र इन पाँचकी व्युच्छित्ति होती है । प्रमत्तमें अपनी पाँच । अप्रमत्तमें सम्यक्त्व प्रकृतिका क्षय हो जानेसे तीन । अपूर्वकरण आदिमें क्रम से छह, २५ छह, एक, दो, सोलह, तीस, बारह ।
४. असंयत में आहारक द्विक और तीर्थंकरका अनुदय । उदय एक सौ तीन । ५. देश संयत में बीस मिलाकर अनुदय तेईस २३ । उदय तेरासी ८३ ।
६. प्रमत्तमें पाँच मिलाकर आहारक द्विकका उदय होनेसे अनुदय छब्बीस २६ । उदय अस्सी ८० ।
३०
७. अप्रमत्तमें पाँच मिलाकर अनुदय इकतीस ३१ । उदय पिचहत्तर । ८. अपूर्वकरण में तीन मिलाकर अनुदय चौंतीस | उदय बहत्तर ७२ | ९. अनिवृत्तिकरण में छह मिलाकर अनुदय चालीस । उदय छियासठ । १०. सूक्ष्मसाम्पराय में छह मिलाकर अनुदय छियालीस | उदय साठ |
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