Book Title: Gommatasara Karma kanad Part 1
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 617
________________ कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका पृत्थिगोळु योग्यसत्वप्रकृतिगळु नूर नाल्वत्तेळप्पु १४७ वल्लि मिथ्यादृष्टियोळसत्वं शून्यं सत्वं नूर नाल्वत्तेळु १४७। सासादननोळ तोत्थंमुमाहारकटिकमुसत्वमक्कु। सत्यप्रकृतिगळ, नूर नाल्वत्तनाल्कु १४४ । मिश्रगुणस्थानदोळु तीर्थमों दे असत्वमक्कं १ । सत्वगळ नूर नाल्वत्तार १४६ । असंयतगुणस्थानदोळु असत्वं शून्यमक्कुं। सत्वंगळु तीर्थमुमाहारकद्वय, सहितमागि नूरनाल्वत्तेळ, १४७ । संदृष्टि : घम्मे वंसे मेघयोग्य १४७ । • मिसा | मि अ सत्व १४७ १४४ १४६ १४७ | अस ० ३ १ . अंजनेयादियागि मघवि पर्यंत मूलं पृथ्विगळोळ योग्यसत्वप्रकृतिगळ तीर्थ, देवायुष्य, पोरगागि योग्यसत्वप्रकृतिगळ. नूरनाल्वत्तारप्पु १४६ वल्लि मिथ्यादृष्टि गुणस्थानोमसत्वं शून्यं । सत्वप्रकृतिगळु नूर नाल्वत्तारु १४६ ॥ सासावनगुणस्थानदोळाहारकद्विकमसत्वमक्कु २। सत्वंगळु नूरनाल्वत्तनाल्कु १४४ । मिश्रगुणस्थानदोळ आहारकतिकं सहितमागि नूरनाल्वत्तारु सत्वप्रकृतिगळक्कुं १४६ । असंयतगुणस्थानवोळसत्वं शून्यं । सत्वप्रकृतिगळ, नूरनाल्वत्तारु १४६ । १० संदृष्टि : ma रिंशच्छतं । तत्र धर्मादित्रयसत्त्वे १४७ । मिथ्यादृष्टावसत्त्वं शून्यं । सत्त्वं सर्व । सासादने तीर्थाहारद्वयं असन्त्वं । सत्त्वं चतुश्चत्वारिंशच्छतं । मिश्रे तीर्थमसत्त्वं सत्त्वं षट्चत्वारिंशच्छतं । असंयते असत्त्वं शून्यं, सत्त्वं सर्व १४७। अंजनादित्रयसत्त्वे १४६ मिथ्यादृष्टावसत्त्वं शून्यं सत्त्वं सर्व १४६ । सासादने आहारकद्विकमसत्त्वं सत्त्वं १५ च चतुश्चत्वारिंशच्छतं । मित्रे असत्त्वं शून्यं सत्त्वमाहारकद्वयसद्भावात् सर्व १४६ । असंयते असत्त्वं शून्यं सत्त्वं सर्व १४६ । चतुर्थ आदि पृथिवियों में सत्त्व एक सौ छियालीस है। वहाँ भी मनुष्यायुका सत्त्व छठी पृथ्वी तक है अतः सातवीं माघवी पृथ्वीमें एक सौ पैंतालीसका सत्त्व है। इस प्रकार धर्मा आदि तीन पृथिवियोंमें सत्त्व एक सौ सैंतालीस है। सो मिथ्यादृष्टिमें असत्त्व शून्य है २० अर्थात् नहीं है। सत्व एक सौ सैंतालीस । सासादनमें तीर्थंकर और आहारकद्विकका असत्व । सत्त्व एक सौ चवालीस । मिश्रमें तीर्थकरका असत्त्व, सत्त्व एक सौ छियालीस । असंयतमें असत्त्व शून्य, सत्त्व एक सौ सैतालीस । __ अंजना आदि तीन पृध्वियोंमें सत्त्व एक सौ छियालीस । मिध्यादृष्टिमें असत्त्व शन्य, सत्त्व एक सौ छियालीस । सासादनमें आहारकद्विकका असत्त्व, सत्व एक सौ चवालीस। २ मिअमें असत्त्व शून्य, सत्त्व आहारकद्विककी सत्ता होनेसे सब १४६ । असंयतमें असत्व Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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