Book Title: Gommatasara Karma kanad Part 1
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 583
________________ कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका ५३३ १०८ । मिथ्यादृष्टघावि सप्तगुणस्थानं गळप्पुवल्लि मिथ्यादृष्टियोळु मिथ्यात्वप्रकृतियों देयुदयव्युच्छित्तियकुं १ । सासादननोलु अनंतानुबंधिकषायचतुष्क मुदयव्युच्छित्तियक्कुं ४ ॥ मिश्रनोळु मिश्रप्रकृतियों वक्कुदयव्युच्छित्तियक्कु १ मसंयतनोळु द्वितीयकषायचतुष्कमुं ४ सुरचतुष्कमुं ४ सुरायुष्यमुं १ मनुष्यानुपूर्व्यमुं १ दुभंगत्रयम् ३ मंतु त्रयोदशप्रकृतिगळगुदय व्युच्छित्तियक्कुं १३ ॥ देशसंयतनोळु तृतीयकषायमुं तिर्य्यगायुष्यमुं १ उद्योतमुं १ नीचैर्णोत्रमुं १ तिर्य्यग्गतिषु १ ५ प्रकृतिगव्युच्छित्तियक्कुं ८ ॥ प्रमत्तसंयतनोळाहारद्विकमुं २ | स्त्यानगृद्धित्रयम् ३ संतु पंचप्रकृतिगळगुदय०युच्छित्तियक्कं ५ ॥ अप्रमत्तसंयतनोळ सम्यक्त्वप्रकृतिमंतिमसंहननत्रयमुमंतु नाकु' प्रकृतिगळगुदयव्युच्छित्तियक्कु ४ मंतागुत्तं विरलु मिथ्यादृष्टिगुणस्थानदोळु मिश्रप्रकृतियु सम्यक्त्वप्रकृतियु आहारकद्विकमुं २ णराणू ण मिच्छ वुगे येंदु मनुष्यानुपूर्व्यमु १ मंतर प्रकृतिगळगनुवयंगळक्कु ं ५ । उदयंगळ, नूर मूरु १०३ ॥ सासादन गुणस्थानदोळों दुगूडियनुदयंगळारु ६ । १० उदयंगळ, नूरेरडु १०२॥ मित्रगुणस्थानदोळ नाल्कुगूडियनुबयंगळ हत्तरोछु मिश्रप्रकृतियं कळेबुवांगळोळ, कूडि मत्तमुदयंगळोळ देवानुपूर्व्यमं कळेदनुदयंगळोळ कूडुत्तं विरलनुदयंगळ पत्तु १० । उवयंगळ तो भत्ते दु ९८ ॥ असंयत गुणस्थानदोळो बुगूडियनुदयंगळ पन्नों दरोळ, सम्यक्त्वप्रकृतिधुमं मनुष्यानुपूर्व्यमं देवानुपूर्व्यमुमनंतु मूरुं प्रकृतिगळं कळेदुदयंगळोळ १०८ | गुणस्थानानि सप्ताद्यानि । तत्र मिध्यादृष्टी मिध्यात्वं व्युच्छित्तिः १ । सासादनेऽनंतानुबंधिचतुष्कं ४ । १५ मिश्र मिश्र १ । 'असंयते द्वितीयकषायाः सुरद्विकं वैक्रियिकद्विकं सुरायुमनुष्यानुपूर्व्यं दुभंगत्रयं चेति त्रयोदश । देशसंयते तृतीयकषायास्तिर्यगायुरुद्योतो नीचगत्रं तिर्यग्गतिश्चेत्यष्टौ ८ प्रमत्ते आहारकद्विकं स्त्यानगृद्धियं चेति पंच ५ । अप्रमत्ते सम्यक्त्वमंतिमसंहननत्रयं चेति चत्वारि ४ । एवं सति मिथ्यादृष्टी मिश्रं सम्यक्त्वमाहारकद्विकं 'णराणूण मिच्छदुये' इति मनुष्यानुपूर्व्यं चेति पंचानुदयः ५ उदयस्त्रयुत्तरशतं १०३ । सासादने एकं संयोज्यानुदयः षट् उदयो द्वयुत्तरशतं १०२ । मिश्रेऽनुदयः चतुष्कं देवानुपूव्यं च मिलित्वा मिश्रोदयाद्दश १० । २० उदयोऽष्टानवतिः ९८ । असंयतेऽनुदये एकं संयोज्य सम्यक्त्वमनुष्यदेवानुपूर्योदयादष्टो ८ । उदयः शतं १०० । श्यामें तीर्थंकरका उदय होनेसे एक सौ आठका उदय है । गुणस्थान आदिके सात होते हैं । उनमें मिध्यादृष्टि में मिध्यात्वकी व्युच्छित्ति होती है । सासादनमें अनन्तानुबन्धी चार । मिश्र में मिश्र । असंयत में दूसरी कषाय चार, देवगति, देवानुपूर्वी, वैक्रियिकद्विक, देवायु, मनुष्यानुपूर्वी, दुभंग आदि तीन सब तेरह १३ । देशसंयतमें तीसरी कषाय चार, तिर्यंचायु, २५ उद्योत, नीचगोत्र, तियंचगति आठ । प्रमत्तमें स्त्यानगृद्धि आदि तीन आहारकद्विक १ । अप्रमत्तमें सम्यक्त्व और अन्तके तीन संहनन सब चार । ऐसा होनेपर - १. मिध्यादृष्टिमें मिश्र, सम्यक्त्व, आहारकद्विक और मनुष्यानुपूर्वी मिलकर अनुदय पाँच । उदय एक सौ तीन १०३ । २. सासादन में एक मिलाकर अनुदय छह । उदय एक सौ दो १०२ । ३० ३. मिश्रमें अनुदय चार और देवानुपूर्वी मिलाकर मिश्रका उदय होनेसे दस १० । उदय अठानबे ९८ । ४. असंयतमें अनुदय एक मिलाकर सम्यक्त्व, मनुष्यानुपर्वी, देवानुपूर्वीका उदय होनेसे आठ ८ । उदय सौ १०० । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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