Book Title: Gommatasara Karma kanad Part 1
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 590
________________ ५४० गो० कर्मकाण्डे कळेवु चरम संहननत्रयक्कुवयव्युच्छित्तियक्कु ३ ॥ अपूव्वं करणनो षण्नोकषायंगळगुदयव्युच्छित्तियक्कु ६ | अनिवृत्तिकरणनोळु वेदत्रयमुं संज्वलनक्रोधावित्रयमुमंता प्रकृतिगळगुदयव्युच्छित्तिपक्कु ६ ॥ सूक्ष्म सांवरायनोळ सूक्ष्मलोभक्कुदयव्युच्छित्तियक्कु १ ॥ उपशांत कषायनोळ वज्रनाराच नाराचसंहनन द्विकक्कुदय व्युच्छित्तियक्कु २ मंतागुत्तं विरलसंयतगुणस्थानदोळनुदयं५ शून्यमेके बोर्ड सम्यक्त्वप्रकृतियुमाहारकद्वयमुं २ तीर्थमुं राशियोळकळेदुवपुरिव उदयंगळ नूर ॥ वेशसंयत गुणस्थानबोळ, पदिनात्कुगूडियनुदयंगळ, पदिनाकयप्पु १४ । उदयंगळेणभत्तारु ८६ ॥ प्रमत्तसंयत गुणस्थानवोळे दुगूडियनुदयंगळिप्तेरडु २२ । उदयंगळे पत्ते दु ७८ ॥ अप्रमत्तगुणस्थानदोळ सूरु गडियनुवयंगळिप्पत्तय् २५ । उवयंगळे प्पत्तय्वु ७५ । अपूर्वकरण गुणस्थानदोळ मूरु गूडियनुदयंगळपत्ते २८ । उवयंगळे प्पत्तेरडु ७२ ॥ अनिवृत्तिकरणगुणस्थानदोळा रुगू डियनु१० वयंगळ मूवत्तनात्कु ३४ । उदयंगळस्वत्तारु ६६ ॥ सूक्ष्मसांपरायगुणस्थानबोळारुगू डियनुदयंगळ नात्वत्तु ४० । उदयंगळरुवत्तु ६० ॥ उपशांतकषायवीतरागछ्द्यस्थगुणस्थानदोळ, मो दुगूडियनदयंगळ नावत्तों प्रकृतिगळवु ४१ । उदयप्रकृतिगळय्वत्तो भत्तप्पुवु ५९ । संदृष्टि : व्युच्छित्तिः ३ । अप्रमत्ते सम्यक्त्व प्रकृत्यभावाच्चरमसंहननत्रयं ३ । अपूर्वकरणे षण्णोकषायाः ६ । अनिवृत्तिकरणे वेदत्रयं संज्वलनक्रोधादित्रयं च ६ । सूक्ष्मसांपराये सूक्ष्मलोभः । उपशांतकषाये वज्रनाराचनाराचद्विकं । १५ एवं सत्यसंयतेऽनुदयः शून्यं सम्यक्त्वाहारकद्वयतीर्थापनयनात् । उदयः शतं १०० | देशसंयतेऽनुदयश्चतुर्दश १४ उदयः षडशीतिः ८६ । प्रमत्तेऽष्टौ संयोज्यानुदयो द्वाविंशतिः २२ । उदयोऽष्टसप्ततिः ७८ । अप्रमत्ते त्रयं संयोज्यानुदयः पंचविंशतिः २५ । उदयः पंचसप्ततिः । अपूर्वकरणे त्रयं संयोज्यानुदयोऽष्टाविंशतिः २८ । उदयो द्वासप्ततिः ७२ । अनिवृत्तिकरणे षट् संयोज्यानुदयश्चतुस्त्रिशत् ३४ । उदयः षट्षष्टिः ६६ । सूक्ष्मसांप षट् संयोज्यानुदयश्चत्वारिंशत् ४० । उदयः षष्टिः ६० । उपशांतकषाये एकां संयोज्यानुदय एकचत्वारिंशत् ४१ । उदय एकान्नषष्टिः ५९ । २० २५ ३० स्त्यानगृद्धि आदि तीनकी व्युच्छित्ति होती है । अप्रमत्तमें सम्यक्त्व प्रकृतिका अभाव होने से अन्तके तीन संहनन की व्युच्छित्ति है । अपूर्वकरण में छह नोकषाय । अनिवृत्तिकरण में तीन वेद और तीन संज्वलनकषाय । सूक्ष्म साम्पराय में सूक्ष्मलोभ । उपशान्त कषायमें वज्र नाराच और नाराच संहननकी व्युच्छित्ति होती है। ऐसा होने पर ४ असंयत में अनुदय शून्य क्योंकि सम्यक्त्व, तीर्थंकर और आहारक द्विक नहीं है । उदय सौ १०० । ५ देश संयत में अनुदय चौदह १४ । उदय छियासी ८६ । ६ प्रमत्त में आठ मिलाकर अनुदय बाईस २२ । उदय अठहत्तर ७८ । ७ अप्रमत्त में तीन मिलाकर अनुदय पचीस । उदय पचहत्तर ७५ । ८ अपूर्वकरण में तीन मिलाकर अनुदय अठाईस २८ । उदय बहत्तर ७२ ॥ ९. अनिवृत्तिकरण में छह मिलाकर अनुदय चौंतीस ३४ । उदय छियासठ । १०. सूक्ष्मसाम्पराय में छह मिलाकर अनुदय चालीस ४० । उदय साठ ६० । ११. उपशान्तकषाय में एक मिलाकर अनुदेय इकतालीस ४१ । उदय उनसठ ५९ । For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org

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