Book Title: Gommatasara Karma kanad Part 1
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

View full book text
Previous | Next

Page 588
________________ ५ ५३८ गो० कर्मकाण्डे वयमिल्ल। द्वितीयोपशमसम्यक्त्वबोलाबोर्ड देवायुष्यमं बिट्टु शेषायुष्यंगळ सत्त्वमिल्लेर्क बोर्ड उपशमश्रेण्या रोहण निमित्तमागि सातिशयाप्रमत्तसंयतं द्वितीयोपशमसम्यक्त्वमं कैकोळगुमप्पुर्दारव मणुवत्र महव्वदाई ण लहइ देवाउगं मोत्तु में दी नियम मुंढप्पु दरिदमा सूरु मायुष्यंगळगे सत्वमिल्ल कारणविंदमा मूरु मानुपृष्ठयंगळ्गुदयमिल्ल । प्रथमोपशमसम्यक्त्वदोळं, द्वितीयोपशमसम्यक्त्वदोलमाहारकऋद्धिप्रातरिल्लप्पुर्दारवमाहारक द्विकषक मुवयमिल्ळे वरिउदितरियल्पडुत्तं विरलु भव्य मागणेयाळु मूलौघमप्पुदरिदमुदययोग्यप्रकृतिगळु नूरिपत्तेरडु १२२ गुणस्थानं गळु मल्लि पविनालकुमga | मिथ्यादृष्टचाविगुणस्थानंगळोळ यथाक्रर्मादिदमुदयव्युच्छित्तियुवयानुदयप्रकृतिगळु मुन्नं गुणस्थानवोळ पेवंत रचनाविशेषमं माडुत्तं विरलु संदृष्टि :― भव्य मा० योग्य १२२ । मि सा मि अ व्यु ५ ९ १ १७ ० उ ११७ १११ १०० १०४ अ व्यु 5 अ : ५ ११ २२ ८ .५ ९ १ १७ ११७ १११ | १०० | १०४ ५ ११ २२ १८ प्र अ ५ ८७ ८१ १८ ३५ ४१ ८ ५ ८७ ८१ ३५ ४१ 20 ४ ७६ ४६ अ ६ ७२ ५० अ सू उ क्षी स अ ६ १ | १६ ३० १२ ६६ ६०५९ ५७ ५६ ६२ ६३ ६५ दयः । द्वितीयोपशमसम्यक्त्वेपि देवायुविना न शेषायुः सत्त्वं उपशमश्रेण्यारोहणार्थं सातिशयाप्रमत्तेनैव १० तत्सम्यक्त्वस्य स्वीकरणात् 'अणुवदमहम्बदाई ण लहइ देवाउगं मोत्तु' इति नियमात् न तदानुपूर्व्यत्रयस्य सत्वं । तत उदयोऽपि न । उभयोपशमसम्यक्त्वे आहारकद्ध प्राप्ते न तद्द्द्विकोदयः । तथा सति भव्यमार्गणायां मूलोध इत्युदययोग्यं द्वाविंशत्युत्तरशतं । गुणस्थानानि चतुर्दश । व्युच्छित्यादि गुणस्थानवत् । संदृष्टि -- भव्यमार्ग = योग्य १२२ । ४२ १२ ४ ६ १ ६ ७२ ७६ ६६ ५० ५६ ६२ ६० ४६ ८० ११० २ १६ ३० १२ ५९ ५७ ४२ १२ ६३ | ६५ ८० ११० नहीं होता । द्वितीयोपशम सम्यक्त्वमें भी देवायुके विना शेष आयुका सत्त्व नहीं होता; क्योंकि उपशम श्रेणिपर आरोहण करने के लिए सातिशय अप्रमत्त गुणस्थानवर्ती जीव ही १५ द्वितीयोपशम सम्यक्त्वको स्वीकार करता है । और अणुव्रत महाव्रत देवायुके सिवाय अन्य आयुका बन्ध करनेवाले के होते नहीं, ऐसा नियम है। अतः उपशम सम्यक्त्व में देव विना तीन आनुपूर्वी का सत्व नहीं होता। इसीसे उदय भी नहीं होता । दोनों ही उपशम सम्यक्त्वों में आहारकऋद्धि प्राप्त नहीं होती। अतः उपशम सम्यक्त्वमें आहारकद्विकका उदय नहीं होता । ऐसा होनेपर भव्य मार्गणा में उदययोग्य एक सौ बाईस । गुणस्थान चौदह । २० व्युच्छित्ति आदि गुणस्थानवत् जानना । संदृष्टि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 586 587 588 589 590 591 592 593 594 595 596 597 598 599 600 601 602 603 604 605 606 607 608 609 610 611 612 613 614 615 616 617 618 619 620 621 622 623 624 625 626 627 628 629 630 631 632 633 634 635 636 637 638 639 640 641 642 643 644 645 646 647 648 649 650 651 652 653 654 655 656 657 658 659 660 661 662 663 664 665 666 667 668 669 670 671 672 673 674 675 676 677 678 679 680 681 682 683 684 685 686 687 688 689 690 691 692 693 694 695 696 697 698