Book Title: Gommatasara Karma kanad Part 1
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 554
________________ ५०४ गो० कर्मकाण्डे १॥सासादननोळनंतानुबंधिकषायचतुष्कक्कुदयव्युच्छित्तियक्कुं ४॥ मिश्रनोळ मिश्रप्रकृतियुदयव्युच्छित्तियक्कुं १। असंयतनो द्वितीयकषायचतुष्क, ४ वैकियिकद्विक, २। सुरद्विक, २ सुरायुष्यमु१। मनुष्यानुपूर्व्यमु१ । तिर्यगानुपूर्व्यमु१ । दुर्भगानादेयायशस्कोत्तित्रितयमु ३ मितु पदिनाल्कुं प्रकृतिगळ्गुदयव्युच्छित्तियक्कु १४ ॥ देशसंयतं मोदलागियपूर्वकरणगणस्थान५ पय्यंतमड ८ पंच य ५ चउर ४ छक्क ६ प्रकृतिगळगुदयव्युच्छित्तियक्कु। मनिवृत्तिकरण सवेद प्रथमभागेयोळु पुंवेदमु१। संज्वलनक्रोधमु१। संज्वलनमानमु१। संज्वलनमाययु १ मितु नाल्कु४। सूक्ष्मसांपरायन लोभमुं १। उपशांतकषायन वज्रनाराचसंहननद्विलयमु२। क्षीणकषायन पदिनार १६। सयोगायोगिकेवलिभट्टारकद्वितयतीर्थरहित नाल्वत्तोंदु प्रकृतिगळ, कडियनिवृत्तिकरणनोळुदयव्युच्छित्तिगळरुवत्तनाल्कु ६४। एक दोडे पुंवेदोक्यमेल्लिवर{टल्लिवरमा १० मार्गणेयप्पुरदं मेलण प्रकृतिगळेल्लमनिवृत्तिकरणनोळे ब्युच्छित्तिगळप्पुवप्पुरिदं । मिथ्या दृष्टिगुणस्थानदोळ मिश्रप्रकृतियं सम्यक्त्वप्रकृतियमाहारकद्वयमुमितु नाल्कुप्रकृतिगळगनुदय. मक्कुं ४ । उदयंगळ नूर मूरु १०३। सासादनगुणस्थानदोळो दुगूडियनुदयंगळय्दु ५। उदयप्रकृतिगळु नूररडु १०२। मिश्रगुणस्थानदोळ नाल्कुगूडियनुदयंगळो भत्तरोळु मिश्रप्रकृतियं कळेदुदयंगळोळु कूडुत्तं विरलनुदयंगळ पन्नों दु ११ । उदयंगळ तो भत्तारु ९६ । असंययगुणस्थान. १५ दोळो दुगूडियनुदयंगळ, पन्नेरडरोळु सम्यक्त्वप्रकृतियुमं १ तिर्यग्मनुष्यदेवानुपूटव्यंगल मूरुम व्युच्छित्तिः १ । सासादने अनंतानुबंधिचतुष्कं ४ । मित्रे मिथं । असंयते द्वितीयकषायचतुष्कं वैक्रियिकद्विकं सुरद्विकं सुरायुः मनुष्यतिर्यगानुपू] दुभंगानादेयायशस्कीर्तयश्चेति चतुर्दश १४ । देशसंयतादिचतुषु क्रमेणाष्टौ पंच चत्वारि षट् । अनिवृत्तिकरणसवेदप्रथमभागे पुंवेदसंज्वलनक्रोधमानमायाः सूक्ष्मलोभः वज्रनाराचनाराचे षोडश तीर्थकरत्वं विनकचत्वारिंशच्चेति चतुःषष्टिः ६४। मिथ्यादृष्टौ मिश्रसम्यक्त्वाहारकद्वयान्यनुदयः ४ उदयः व्युत्तरशतं । १०३ । सासादने एका संयोज्य अनुदयः पंच ५ । उदयो द्वयुत्तरशतं १०२। मिश्रेऽनुदयः चतुष्कमानुपूर्व्यत्रयं च मिलित्वा मिश्रोदयादेकादश ११ । उदयः षण्णवतिः । ९६ । असंयतेऽनुदयः एक पन्द्रहका उदय न होनेसे उदय योग्य एक सौ सात हैं। उसमें मिथ्यादृष्टिमें मिथ्यात्वकी व्युच्छित्ति होती है । सासादनमें अनन्तानुबन्धी चार । मिश्रमें मिश्र । असंयतमें अप्रत्या ख्यानावरण कषाय चार वैक्रियिक शरीर व अंगोपांग, देवगति, देवानुपूर्वी, देवायु, मनुष्यानु२५ पूर्वी, तिर्यंचानुपूर्वी, दुर्भग, अनादेय, अयशःकीर्ति ये चौदह १४ । देशसंयत आदि चार गुणस्थानोंमें क्रमसे आठ, पाँच, चार और छह । अनिवृत्तिकरणके प्रथम सवेद भागमें पुरुषवेद, संज्वलन क्रोध मान माया, सूक्ष्म लोभ, वज्रनाराच नाराच संहनन, क्षीणकषाय सम्बन्धी सोलह और तीर्थकरके बिना केवली सम्बन्धी इकतालीस इन चौंसठकी व्युच्छित्ति होती है क्योंकि अनिवृत्तिकरणके सवेद भागसे आगे वेदका उदय न होनेसे वेदमैं नौ ३० ही गुणस्थान होते हैं । अत: १. मिथ्यादृष्टि में मिश्र, सम्यक्त्व और आहारकद्विक चार ४ का अनुदय। उदय १०३। २. सासादनमें एक मिलाकर अनुदय पाँच । उदय एक सौ दो १०२ । ३. मिश्रमें अनुदय चार और तीन आनुपूर्वी मिलकर मिश्रका उदय होनेसे ग्यारह ११। उदय छियानबे ९६ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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