Book Title: Gommatasara Karma kanad Part 1
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 575
________________ कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका ___ ५२५ अचक्षुद्देशनमार्गयोळु तीर्थकरनामरहितसामान्योदयप्रकृतिगळु नूरिप्पत्तोंदु १२१ । गुणस्थानंगळु मिथ्यादृष्टिमोवलागि पन्नेरडं गुणस्थानंगळप्पुवु । मिथ्यादृष्टयादिगळोळु यथाक्रमदिदमुक्यव्युच्छित्तिगळ पण णव इगि सत्तरसं अड पंच य चउर छक्क छच्चेव इगि दुग सोळस प्रकृतिगळप्पुवंतागुतं विरलु मिथ्यादृष्टिगुणस्थानदोळु मिश्रप्रकृतियुं सम्यक्त्वप्रकृतियुमाहारकद्वयमुमंतु नाल्कुं प्रकृतिगळानुवयमक्कुं । ४ । उदयंगळ. नूरहदिनेळ ११७ । सासादननोळय्दुं ५ कूडियनुवयंगळ ओ भत्तरोळ, नरकानुपूज्यमनुदयंगळोळु कळे वनुदयंगळोळु कूडुत्तं विरलनुदयंगळ पत्तुं १० । उदयंगल नूर हन्नोंदु १११ ॥ मिश्रगुणस्थानदोळो भत्तुगूडियनुदयंगळ हत्तो भत्तरोळ मिश्रप्रकृतियं कळदुदयंगळोळु कूडिमत्तमुदयप्रकृतिगळोळानुपूयंत्रितयमं कळे दनुदयप्रकृतिगळोळ कूडुत्तं विरलनुदयंगळिप्पत्तोंदु २१ । उदयंगळ नूरु १०० ॥ असंयतगुणस्थानदोळ ओ दुगूडियनुक्यंगळ यिप्पत्तेरडरोळ. सम्यक्त्वप्रकृतियुमनानुपूळ्यचतुष्कमुमनंतु पंचप्रकृतिगळं कळेदुदय- १० प्रकृतिगळोळ कूडुत्तं विरळनुदयंगळु पविनेळ १७। उदयंगळ नूर नाल्कु १०४ ॥ देशसंयतगुणस्थानवोळ. पदिनेळ गूडियनवयंगळ मूवत्तनाल्कु ३४ । उवयंगळे भत्तेळ ८७ । प्रमत्तगुणस्थानबोलेंटुगूडियनुवयंगळ नाल्वत्तेरडरोळ आहारकद्विकर्म कळे दुदयप्रकृतिगळोळ कूडुत्तं विरलनुदयंगळ, नाल्वत्तु ४० । उवयंगळ येंभत्तोंदु ८१॥ अप्रमत्तगुणस्थानं मोदल्गोंडु क्षीणकषायगुण अचक्षुर्दर्शने तीर्थकरत्वं नेत्युदयप्रकृतयः एकविंशत्युत्तरशतं १२१ । गुणस्थानानि मिथ्यादृष्टयादीनि १५ द्वादश, व्युच्छित्तयः 'पण्णवइगिसत्तरसं अइपंचयचउरछक्कछच्चेव इगिदुगसोलस' एवं सति मिथ्यादृष्टी मिश्रसम्यक्त्वाहारकद्वयान्यनुदयः ४ । उदयः सप्तदशोत्तरशतं ११७ । सासादनेऽनुदयः पंच नारकानुपूज्यं च मिलित्वा दश १०। उदय एकादशोत्तरशतं १११ । मिश्रेऽनुदयो नवानुपूयंत्रयं च मिलित्वा मिश्रोदयादेकविंशतिः २१ । उदयः शतं १०० । असंयतेऽनुदय एका संयोज्य सम्यक्त्वानुपूर्व्यचतुष्कोदयात्सप्तदश १७ । उदयश्चतुरुत्तरशतं १०४ । देशसंयते सप्तदश संयोज्यानुदयश्चतुस्त्रिशत् ३४ उदयः सप्ताशीतिः ८७ । प्रमत्तेऽष्ट २० संयोज्याहारकद्विकोदयादनुदयश्वत्त्वारिंशत् । उदय एकाशीतिः ८१ । अप्रमत्तात् क्षीणकषायपर्यंतमनुदयः अचक्षुदर्शनमें तीथंकरका उदय न होनेसे उदय प्रकृतियाँ एक सौ इक्कीस १२१ हैं । गुणस्थान मिथ्यादृष्टि आदि बारह । व्युच्छित्ति क्रमसे पाँच, नौ, एक, सतरह, आठ, पाँव, चार, छह, छह, एक, दो, सोलह । ऐसा होनेपर १. मिथ्यादृष्टिमें मिश्र, सम्यक्त्व और आहारकद्विकका अनुदय ४ । उदय एक सौ २५ । सतरह। २. सासादनमें अनुदय पाँच और नरकानुपूर्वी मिलकर दस १० । उदय एक सौ ग्यारह । ३. मिश्र अनुदय नौ और तीन आनुपूर्वी मिलकर मिश्रका उदय होनेसे इक्कीस । उदय सौ १००। ४. असंयतमें अनुदय एक मिलाकर सम्यक्त्व और चार आनुपूर्वीका उदय होनेसे ३० सतरह १७ । उदय एक सौ चार १०४ । ५. देशसंयतमें सतरह मिलाकर अनुदय चौंतीस ३४ । उदय सतासी ८७ । ६. प्रमत्तमें आठ मिलाकर आहारकद्विकका उदय होनेसे अनुदय चालीस । उदय ८१। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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