Book Title: Gommatasara Karma kanad Part 1
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 573
________________ कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका कळेयलु शेष नूर पदिनालकुं प्रकृतिगळुदययोग्यंगळप्पुवु ११४ । गुणस्थानंगळं मिथ्यादृष्टियादियागि क्षीणकषायावसानमागि परवल्लि मिथ्यादृष्टियोळ मिथ्यात्वप्रकृतियुमपर्य्याप्तनाम मुमितेर प्रकृतिगळ्गुवयव्युच्छित्तियक्कुं २ ॥ सासादननोळनंतानुबंधिकषायचतुष्कर्मु ४ चतुरिद्रियजातिनाममुमित ५ प्रकृतिगळगुदयव्युच्छित्तियवकुं ५ ॥ मिश्रं मोवल्गोडु क्षीणकषाय गुणस्थानपय्यंतं यथासंख्यमागि इगि सत्तरसं अडपंचय चउर छक्क छच्चेव इगि दुग सोळस प्रकृतिगळगुवयव्युच्छित्तियक्कुमंतागुत्तं विरल मिथ्यादृष्टिगुणस्थानदोळ, मिश्रप्रकृतियुः सम्यक्त्व प्रकृतियुमाहारकद्वयमुमितु नात्कं प्रकृतिगळ्गनुवयमक्कुं ४ । उदयंगळ नूर हत्तु ११० ॥ सासादन गुणस्थानवोळे रडुडियनुदयंगळाररोळ नरकानुपूर्व्यमनुदयप्रकृतिगळोळ, कळेवनुवयंगळोळ, कूडुतं विरलनुवयंगळेळु ७ । उदयंगळ, तूरेल १०७ ॥ मिश्रगुणस्थानदोळगूडियनुदयंगळ पन्नेरडरोळु मिश्र - प्रकृतियं कळेदुदयंगळोळ. कूडि मत्तमुदयप्रकृतिगळोळ शेषानुपूढव्यं त्रयमं कळेदनुदयंगळोळ कूत्तं १० विरलनुवयंगळु पविनाल्कु १४ । उदयंगळ नूरु १०० । असंयत गुणस्थानवोलो दुगूडियनुदयंगळ पविनम्बरो सम्यक्स्वप्रकृतियुमं आनुपूर्ये चतुष्कमुमनंतम्वं प्रकृतिगळ कळेबुवयगंळोळु कूड़तं विरलनुदयंगळं पत्तु १० । उदयंगळ नूर नाल्कु १०४ ॥ देशसंयत गुणस्थानबोळु पदिनेऴुगूडियनुवयंगळिष्पत्तेळु २७ । उदयंगळेणभत्तेळ ८७ ॥ प्रमत्तसंयतगुणस्थानदोळे दुगूडियनुदयंगळ सूवत्तय्दरोळाहारकद्वयमं कळेबुवयंगळोळ कूडुतं विरलनुदयंगळु मृवत्समूरु ३३ । उवयंगळेण्भत्तोंटु ८१ ॥ १५ In ५२३ चतुर्दशोत्तरशत मुदययोग्यं ११४ । गुणस्थानानि मिध्यादृष्ट्यादीनि द्वादश १२ । तत्र मिथ्यादूष्टौ मिथ्यात्वापर्याप्त व्युच्छित्तिः २ । सासादनेऽनंतानुबंधिचतुष्कं चतुरिद्रियं च ५। मिश्रात् क्षीणकषायपर्यंत इगिसत्तरसं अडपंचयचउरछक्कछच्चे व इगिदुगसोलस व्युच्छित्तयः । तथा सति मिथ्यादृष्टी मिश्र सम्यक्त्वं आहारकद्वयं चानुदयः, उदयो दशोत्तरशतं ११० । सासादने द्वे नरकानुपूव्यं च मिलित्वानुदयः सप्त ७ । उदयः सप्तोत्तरशतं १०७ । मिश्रनुदयः पंच शेषानुपूर्व्यत्रयं च मिलित्वा मिश्रोदयाच्चतुर्दश १४ । उदयः शतं १०० । २० असंयतेऽनुदयः एकं संयोज्य सम्यक्त्वानुपूर्व्यचतुष्कोदयाद्दश १० । उदयश्चतुरुत्तरशतं १०४ । देशसंयते सप्तदश संयोज्यानुदयः सप्तविंशतिः २७ । उदयः सप्ताशीतिः ८७ । प्रमत्तेऽष्ट संयोज्याहारकद्वयोदयादनुदयस्त्र स्थावर, सूक्ष्म और तीर्थकरके न होनेसे उदययोग्य एक सौ चौदह १९४ हैं । गुणस्थान मिध्यादृष्टि आदि बारह हैं । उनमें से मिथ्यादृष्टिमें मिध्यात्व और अपर्याप्त दोकी व्युच्छित्ति होती है । सासादन में अनन्तानुबन्धी चार और चौइन्द्रिय पाँच । मिश्र से क्षीणकषायपर्यन्त २५ क्रमसे एक, सतरह, आठ, पाँच, चार, छह, छह, एक, दो और सोलहकी व्युच्छिति I है। १. मिथ्यादृष्टि में मिश्र, सम्यक्त्व और आहारकद्विकका अनुदय है । उदय एक सौ ५ दस ११० । २. सासादनमें दो और नरकानुपूर्वी मिलकर अनुदय सात । उदय एक सौ सात । ३. मिश्र में अनुदय पाँच और शेष तीन आनुपूर्वी मिलकर तथा मिश्रका उदय होनेसे चौदह १४ । उदय एक सौ १०० । ४. असंयत में अनुदय एक मिलाकर सम्यक्त्व और चारों आनुपूर्वीका उदय होनेसे दस १० । उदय एक सौ चार १०४ । Jain Education International For Private & Personal Use Only ३० www.jainelibrary.org

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