Book Title: Gommatasara Karma kanad Part 1
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith
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कर्णाटवृति जीवतत्त्वप्रदीपिका
५११ संहननद्वयमुं२। क्षीणकषायन पदिनारुं १६ सयोगायोगकेवळिगळ तीर्थरहितमप्प नाल्वत्तोंदु प्रकृतिगळु ४१ अंतरुवत्तमूलं प्रकृतिगळगुदयव्युच्छित्तियक्कं ६३। अंतागुत्तं विरळ मिथ्यादृष्टिगुणस्थानदोलु मिश्रप्रकृतियुं १ सम्यक्त्वप्रकृतियु.१। आहारकद्विक, २ मितु नाळकुं प्रकृतिगळनुदयंगळप्पुवु ४। उदयंगळु नूरय्दु १०५ । सासादनगुणस्थानदोळय्दु गूडियनुवयंगळो भत्तरोळ नरकानुपूर्व्यमनुदयदोळकळेदनुदयंगळोळु कूडिदोडनुदयंगळु पत्तु १०। उदयंगळ, तो भत्तों भत्तु ९९ । मिश्रगुणस्थानदोलारुगूडियनुदयंगळ पदिनाररोल मिश्रप्रकृतियं कलेदुदयंगलळोळ कूडि मतमुदयंगळोळ शेषानुपूर्व्यत्रितयमं कलेदनुवयंगळोळ कूडुत्तं विरलनुदयंगलु पदिनेटु १८ । उदयंगळ तो भत्तो छ ९१। असंयतगुणस्थानदोळो दुगूडियनुदयंगळु पत्तो भत्तरोळ सम्यक्त्वप्रकृतियुमानुपूर्व्यचतुष्कमंतप्दु प्रकृतिगळं गलेदुदयंगलोळ, कूडुत्तं विरलनुदयंगळ पदिनाळ्कु १४। उदयंगळ तो भत्तय्दु ९५ ॥ देशसंयतगुणस्थानदोळ पदिनाकुगूडियनुदयंगलिप्पत्ते टु २८ । १० उदयंगळभत्तोंदु ८१॥ प्रमत्तसंयतगुणस्थानदोळय्दुगूडियनुदयंगळु मूवत्तमूररोळ आहारकद्वयमं कळेदुदयंगळोळ कूडुत्तं विरलनुदयंगळ मूवत्तो दु ३१ । उदयंगळु एप्पत्तेटु ७८ ॥ अप्रमत्तगुणस्थानदोळय्गूडियनुदयंगळ ३६ मूवत्तारु । उदयंळप्पत्त मूरु ७३॥ अपूर्वकरणगुणस्थानलोभापनयनात् शून्यं । उपशांतकषायस्य वज्रनाराचनाराचौ। क्षीणकषायस्य षोडश । सयोगस्य तीर्थ विनकचत्वारिंशच्चेति त्रिषष्टिः ६३ । तथासति-मिथ्यादृष्टौ मिश्रसम्यक्त्वाहारकद्विकान्यनुदयः । उदयः १५ पंवोत्तरशतं १०५ । सासादने पंच नरकानुपूज्यं चेत्यनुदयो दश १० । उदयः एकान्नशतं ९९ । मिश्रे अनुदयः षट शेषानपूर्व्यत्रयं च मिलित्वा मिश्रादयादष्टादश १८ उदय एकनवतिः । असंयते एक संयोज्य सम्यक्त्वानपूयं चतुष्कोदयाच्चतुर्दश, उदयः पंचनवतिः ९५ । देशसंयते चतुःसंयोज्यानुदयेऽष्टाविंशतिः । उदयः एकाशीतिः । ८१ । प्रमत्तसंयते पंच संयोज्याहारकद्विकोदयादेकत्रिंशत् ३१ । उदयोऽष्टासप्ततिः । ७८ । अप्रमत्ते पंच
अपूर्वकरणमें नोकषाय छह । अनिवृत्तिकरणके प्रथम भागमें तीन वेद । दूसरे भागमें संज्वलन २० क्रोध । सूक्ष्म साम्परायके लोभको मूलमें न रखनेसे शून्य, उपशान्त कषायके वनाराच नाराच, क्षीण कषायकी सोलह, सयोगीकी तीर्थकरके बिना इकतालीस ये सब ६३ । ऐसा होनेपर
१. मिथ्यादृष्टि में मिश्र सम्यक्त्व और आहारकद्विकका अनुदय । उदय एक सौ पाँच।।
२. सासादनमें पाँच और नरकानुपूर्वी मिलकर अनुदय दस । उदय निन्यानबे। २५ । व्यच्छित्ति छह ।
३. मिश्रमें छह और तीन आनुपूर्वी मिलाकर मिश्रप्रकृतिका उदय होनेसे अनुदय अठारह १८ । उदय इकानबे ९१ ।
४. असंयतमें एक मिलाकर सम्यक्त्व और चार आनुपूर्वीका उदय होनेसे अनुदय चौदह । उदय पिचानवे ९५। व्यु. १४ ।
५. देशसंयतमें चौदह मिलाकर अनुदय अठाईस । उदय इक्यासी ८१ ।
६. प्रमत्त संयतमें पाँच मिलाकर आहारकद्विकका उदय होनेसे अनुदय इकतीस ३१ । उदय अठहत्तर ७८।
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